अगर कभी किसी मित्र के प्रश्नों का उत्तर समय पर नहीं मिल पाता है तो कृपया अपने प्रश्न दोबारा भेज दिया करें। कभी समयाभाव के कारण उत्तर देने मैं देरी हो सकती है अथवा जब तक मैं आपके प्रश्न देखता हुं कुछ दिन गुजर गए होते हैं।
इसलिये बेहिचक अपने प्रश्न मुझे दोबारा भेज दिया करें। मैसेज टेलीग्राम या इंस्टाग्राम पर भेज सकते है
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मैं यहाँ आप लोगों की यथा सम्भव मदद करने के लिए उपलब्ध हूं।
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जब किसी दिन ध्यान अथवा कक्षा योगासन की कक्षा नहीं लगती है साधक अपना अभ्यास जरूर किया करें।
निरंतता बहुत ही आवश्यक है।
निरंतता बहुत ही आवश्यक है।
प्रश्न - पाश्चात्य लोग और उनकी सभ्यता के प्रभाव में आए लोग भारतीयों को, हिन्दुओं को और उनके ज्ञान को उचित महत्व नहीं देते हैं। लोग चमत्कार को ही नमस्कार करते हैं, योग के कुछ विषय जैसे - त्राटक लम्बे अन्तराल तक कर लेता हूं, इसे रिकॉर्ड की तरह बना कर लोगों के समक्ष रखना चाहता हूं, भारतीय मनीषा की महत्ता स्थापित करना चाहता हूं। कृपया मार्गदर्शन करें।
उत्तर -
सुशील, यहाँ आपके एक प्रश्न नहीं अनेको प्रश्न हैं। उत्तर को ध्यान से समझना, बार बार पढ़ना फिर उन पर अमल करना।
1. तरीका कोई भी हो जब योग एवं ध्यान करते हैं तो अहंकार की भावना समाप्त हो जानी चाहिए।
2. भारतीय मनीषा में अहंकार की कोई जगह नहीं है हमारे कितने ग्रंथ हैं जिनके लेखकों के नाम भी ज्ञात नहीं है क्योंकि ज्ञान को महत्व दिया ज्ञान के प्रति कोई " वर्ल्ड रिकॉर्ड " बनाने की होड़ में नहीं थे।
3. भारतीय मनीषा की महत्ता साबित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो सत्य है वह स्वतः उजागर हो जाता है समय पर।
4. भारतीय ऋषियों ने कभी किसी की बराबरी करने के लिए कुछ भी ज्ञान अर्जन नहीं किया, न ही कभी ज्ञान का दिखावा किया। इसीलिए इतने आक्रमणों के बाद भी आज भी भारतीय धर्म, संस्कृति जीवित है।
5. योग अन्दर की तरफ की यात्रा है, इसमें हमारे बारे में बाहर से कोई क्या सोचता है कोई फर्क नहीं पड़ना चहिए।
6. शान्त इन्सान बनो ऐसा करने से जिन्हें भी शान्ति की आवश्कता होगी वह तुम्हारे पास स्वयं आयेंगे। फिर उनकी जाति, धर्म, रंग, देश कुछ भी आड़े न आयेगा। हमारे यहाँ कितने विद्वान हुए जिनकी महता भारत से ज्यादा दूसरे देशों में है महात्मा बुद्ध, बाबा नीम करोली, स्वामी विवेकानन्द, रमन महर्षि आदि।
लोग चमत्कार को नमस्कार कहते होंगे, लेकिन न तो मैं कोई चमत्कार सिखाता हूं ना अपने साधकों को चमत्कार के पीछे भागने की सलाह देता हूं।
अगर साधना अच्छी चल रही है तो इसका लाभ हो, इसको उसको साबित करने जैसी तुच्छ बातों में क्यों अपना जीवन व्यर्थ करना चाहते हो। प्रतिभा खुद बाहर प्रकट होती है, अगर कहकर बताना पड़े वह मार्ग योग का नहीं।
स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण, श्री अरविन्द इत्यादि ने कोई चमत्कार नहीं दिखाए।
साधारण और सहज जीने का प्रयास करो तुम्हारा जीवन कई लोगों के लिए प्रेरणा का श्रोत बनना चहिए।
सबका कल्याण हो ...
उत्तर -
सुशील, यहाँ आपके एक प्रश्न नहीं अनेको प्रश्न हैं। उत्तर को ध्यान से समझना, बार बार पढ़ना फिर उन पर अमल करना।
1. तरीका कोई भी हो जब योग एवं ध्यान करते हैं तो अहंकार की भावना समाप्त हो जानी चाहिए।
2. भारतीय मनीषा में अहंकार की कोई जगह नहीं है हमारे कितने ग्रंथ हैं जिनके लेखकों के नाम भी ज्ञात नहीं है क्योंकि ज्ञान को महत्व दिया ज्ञान के प्रति कोई " वर्ल्ड रिकॉर्ड " बनाने की होड़ में नहीं थे।
3. भारतीय मनीषा की महत्ता साबित करने की कोई आवश्यकता नहीं है, जो सत्य है वह स्वतः उजागर हो जाता है समय पर।
4. भारतीय ऋषियों ने कभी किसी की बराबरी करने के लिए कुछ भी ज्ञान अर्जन नहीं किया, न ही कभी ज्ञान का दिखावा किया। इसीलिए इतने आक्रमणों के बाद भी आज भी भारतीय धर्म, संस्कृति जीवित है।
5. योग अन्दर की तरफ की यात्रा है, इसमें हमारे बारे में बाहर से कोई क्या सोचता है कोई फर्क नहीं पड़ना चहिए।
6. शान्त इन्सान बनो ऐसा करने से जिन्हें भी शान्ति की आवश्कता होगी वह तुम्हारे पास स्वयं आयेंगे। फिर उनकी जाति, धर्म, रंग, देश कुछ भी आड़े न आयेगा। हमारे यहाँ कितने विद्वान हुए जिनकी महता भारत से ज्यादा दूसरे देशों में है महात्मा बुद्ध, बाबा नीम करोली, स्वामी विवेकानन्द, रमन महर्षि आदि।
लोग चमत्कार को नमस्कार कहते होंगे, लेकिन न तो मैं कोई चमत्कार सिखाता हूं ना अपने साधकों को चमत्कार के पीछे भागने की सलाह देता हूं।
अगर साधना अच्छी चल रही है तो इसका लाभ हो, इसको उसको साबित करने जैसी तुच्छ बातों में क्यों अपना जीवन व्यर्थ करना चाहते हो। प्रतिभा खुद बाहर प्रकट होती है, अगर कहकर बताना पड़े वह मार्ग योग का नहीं।
स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण, श्री अरविन्द इत्यादि ने कोई चमत्कार नहीं दिखाए।
साधारण और सहज जीने का प्रयास करो तुम्हारा जीवन कई लोगों के लिए प्रेरणा का श्रोत बनना चहिए।
सबका कल्याण हो ...
जिसने भी 14 दिन या उससे कम भी चैलेंज में शामिल होने का प्रयास किया सभी को बधाई एवम शुभकामनाएं। इससे आपकी ईच्छा शक्ति का विकास होता है। किसने पूरे 14 दिन तक चैलेंज का पालन किया ?
Anonymous Poll
23%
पूरे 14 दिन पालन किया
26%
बीच में ही चैलेंज टूट गया
51%
चैलेंज में शामिल ही नहीं हुआ
प्रश्न -
मेरे मन में बहुत दुःख का कारण क्या है? जबकि मेरे अंदर ज्यादा कुछ पाने की लालसा नहीं है, जो मिला उसमें संतुष्टि है। फिर भी दुनियाँ की स्थिति देख के बहुत गहरे दुःख का अनुभव होता है।
उत्तर -
२ उत्तर हो सकते हैं, गहराई से समझने की कोशिश करना -
१. पहला इसे कर्म फल के सिद्धान्त पर छोड़ सकती हो, जैसे पुराने और पिछले जन्मों के कर्म। इसको थोड़ा और स्पष्ट समझने के लिए ऐसा समझो जैसे किसी ने 15 साल की उम्र में कोई गलत काम किया और सजा उसे 70 साल की उम्र में मिल रही है, जब वह एक अच्छा इन्सान बन चुका है।
जब तुम उसे 70 में देखोगे तो तुम्हें लगेगा गलत हो रहा है, इसे ही प्रारब्ध कर्म कहा जाता है।
२. दूसरा अन्वेषण करो, खोज करो आखिर दुःख है कहां ? ऐसा क्या है जो दुःख जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तुम्हारे सामने।
बाहरी सारी घटना तो एक साधन मात्र हैं वह दुःख नहीं हैं। जैसे कोई बस या ट्रेन से कोई गंतव्य तक जाता है, लेकिन बस या ट्रेन ही गंतव्य नहीं है।
इसको स्पष्ट समझने के लिए,
तुम्हें दुःख तभी होता है, जब तुम देखती हो या सुनती हो या कह लो इस तरह के विचार कर लेती हो।
लेकिन तुम्हें यह देखने, सुनने को न मिले तो दुनियां से दुःख ख़तम हुआ या तुम्हारा दुःख कम हो गया ? विचार करना। दुनियाँ में दिखने वाले दुःख में कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तुम्हारे दुःख का एक मात्र कारण है मोह! ( Attachment )
अगर तुमने पहले उत्तर को चुना तो सब कर्म सिद्धान्त पर छोड़ दो। सब अपने कर्मों एवम प्रारब्ध का भोग कर रहे हैं। सही और गलत दोनों।
अगर तुमने दूसरे उत्तर को चुना तो तुम्हें खोज करने होंगे, उस खोज का ही नाम योग एवम ध्यान है।
ऊपर के दोनों सिद्धान्त गलत या अलग नहीं हैं, जब तक स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ जाते तब तक अलग से प्रतीत होते रहते हैं और बिना अनुभव इनको एक समझा भी नहीं जा सकता है।
मेरे मन में बहुत दुःख का कारण क्या है? जबकि मेरे अंदर ज्यादा कुछ पाने की लालसा नहीं है, जो मिला उसमें संतुष्टि है। फिर भी दुनियाँ की स्थिति देख के बहुत गहरे दुःख का अनुभव होता है।
उत्तर -
२ उत्तर हो सकते हैं, गहराई से समझने की कोशिश करना -
१. पहला इसे कर्म फल के सिद्धान्त पर छोड़ सकती हो, जैसे पुराने और पिछले जन्मों के कर्म। इसको थोड़ा और स्पष्ट समझने के लिए ऐसा समझो जैसे किसी ने 15 साल की उम्र में कोई गलत काम किया और सजा उसे 70 साल की उम्र में मिल रही है, जब वह एक अच्छा इन्सान बन चुका है।
जब तुम उसे 70 में देखोगे तो तुम्हें लगेगा गलत हो रहा है, इसे ही प्रारब्ध कर्म कहा जाता है।
२. दूसरा अन्वेषण करो, खोज करो आखिर दुःख है कहां ? ऐसा क्या है जो दुःख जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तुम्हारे सामने।
बाहरी सारी घटना तो एक साधन मात्र हैं वह दुःख नहीं हैं। जैसे कोई बस या ट्रेन से कोई गंतव्य तक जाता है, लेकिन बस या ट्रेन ही गंतव्य नहीं है।
इसको स्पष्ट समझने के लिए,
तुम्हें दुःख तभी होता है, जब तुम देखती हो या सुनती हो या कह लो इस तरह के विचार कर लेती हो।
लेकिन तुम्हें यह देखने, सुनने को न मिले तो दुनियां से दुःख ख़तम हुआ या तुम्हारा दुःख कम हो गया ? विचार करना। दुनियाँ में दिखने वाले दुःख में कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तुम्हारे दुःख का एक मात्र कारण है मोह! ( Attachment )
अगर तुमने पहले उत्तर को चुना तो सब कर्म सिद्धान्त पर छोड़ दो। सब अपने कर्मों एवम प्रारब्ध का भोग कर रहे हैं। सही और गलत दोनों।
अगर तुमने दूसरे उत्तर को चुना तो तुम्हें खोज करने होंगे, उस खोज का ही नाम योग एवम ध्यान है।
ऊपर के दोनों सिद्धान्त गलत या अलग नहीं हैं, जब तक स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ जाते तब तक अलग से प्रतीत होते रहते हैं और बिना अनुभव इनको एक समझा भी नहीं जा सकता है।
मैं लोगों की मदद करना चाहती हूं, लेकिन घर से बाहर नहीं जा सकती। क्या मैं आपके ग्रुप से जुड़ सकती हूं, ताकि लोगों की मदद कर सकूं ?
उत्तर -
यहां दो अलग प्रश्न है
पहला लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं अगर घर से बाहर नहीं निकल सकते ?
लोगों की मदद करने के लिए घर से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। जहाँ हो जिस हालत में वहाँ से मदद की जा सकती है। मदद करने के लिए सबसे आवश्यक है भावना और ईच्छाशक्ति।
इसको इस तरह से समझने की कोशिश करते हैं ...
एक होती है प्रत्यक्ष रूप से मदद, जो मोटे तौर पर सब लोगों को दिखती है। इस तरह की मदद अक्सर दिखावे के लिए भी की जाती है। हमेशा दिखावा ही है, ऐसा बिलकुल नहीं है। तो जब कोई मौका मिले तो किसी की मदद कर दिया। कभी किसी को पानी पिला देना, किसी को थोड़े पैसे से मदद कर देना, कोई सेवा दान कर देना इत्यादि.
दूसरे मदद का तरीका है, परोक्ष रूप से। इस तरह के मदद में मदद करने वाली की ख्याति की संभावना बहुत कम रहती है।
जैसे समाज के लिए कितने लोग या कितनी संस्थाएं आपसे बिना उम्मीद रखे काम करती रहती हैं, उनके बारे में हमें जानकारी भी नहीं होती है।
मैं निजी तौर पर परोक्ष रूप के मदद को ज्यादा उत्तम मानता हूं, यह आपके सेवा की गहरी भावना को दिखाता है। यहां अहंकार की स्थिति कम रहती है।
एक और बात यहां गौर कर लेने योग्य है कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं है, बस भावना बड़ी और गहरी रहनी चाहिए। हो सकता है एक ग्लास पानी की मदद से किसी इन्सान या किसी पशु-पक्षी की जान बच जाए।
अब समझते हैं, कुछ ऐसी चीजें जो घर से मदद की जा सकती है।
पशु पक्षी के लिए खाने पीने की व्यवस्था, अपनी आय के अनुसार लोगों की धन दान से मदद, घर अथवा पड़ोस के बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं संस्कार का दान आदि।
एक और बड़ी गहरी मदद की जा सकती है, अगर गहराई से समझ सको इसे। लोगों में मानसिक अशांति बहुत है। हमेशा से रही है लेकिन आज के भाग - दौड़ के समाज में ऐसी स्थिति और ज्यादा हो गई है। ऐसे में उनके सामने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश करो कि कैसे विपरीत स्थिति में शान्त रहा जा सकता है।
यह बहुत ही गहरी मदद होगी लोगों के लिए, इन्सान या जानवर किसी भी शान्त मनुष्य के साथ दो क्षण मिल कर भी शांति का अनुभव करते हैं।
अपने जीवन में भी अनुभव से देखा जा सकता है। जब हम बहुत परेशान होते हो तो चाहते हो कोई एक शान्त अनुभवी इन्सान मिले जिसके पास बैठ के शान्ति का अनुभव किया जा सके। शान्त वातावरण की खोज में लोग पहाड़ों में जाते हैं, नदी किनारे बैठते हैं, जंगलों में भटकते हैं, मंदिरों में जाते हैं। शान्त जानवर के साथ बैठकर अथवा खेलकूद कर भी शान्ति की स्थिति को पाने का प्रयास किया जाता है।
अगर ऐसी शान्त स्थिति अपने आस - पास बना सको तो इससे गहरी मदद नहीं हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले स्वयं को हर परस्थिति में शान्त बनाने का प्रयास करते रहना होगा।
अब दूसरे प्रश्न को लेते हैं, क्या मेरे ग्रुप से जुड़ सकते हैं ?
- हॉं! बिलकुल,
लेकिन यह समझ लेते हैं ध्यान कक्षा ( ग्रुप ) का उद्देश्य क्या है ?
महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण आदि हजारों लोगों ने शान्ति की स्थिति बनाने का प्रयास किया है। ध्यान कक्षा भी बस लोगों के बीच शान्ति के प्रसार के लिए एक और प्रयास है। यहां लोगों को योग एवम ध्यान आदि के बारे में मार्गदर्शन किया जाता है। इस संस्था का प्रचार मैंने कभी किया नहीं, जितने लोग जुड़ें हैं वे वही लोग हैं जो शान्ति के मार्ग पर चलना चाहते हैं, जो अपने आस पास एक गहरी शान्ति का वातावरण पैदा करना चाहते हैं।
जो भी लोग अपने आस-पास शान्ति की स्थिति बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, मैं उन सब जाने - अनजाने लोगों से आत्मीयता के स्तर पर जुड़ा हुआ हूं।
परम शान्ति की तलाश में ध्यान एक गहरा मार्ग है, ध्यान मार्ग का हर एक अभ्यर्थी ध्यान कक्षा का सदस्य है। इस संस्था के विचारों को लोगों तक पहुंचा कर भी लोगों की मदद की जा सकती है और संस्था के प्रति सेवा भाव प्रदर्शित किया जा सकता है।
उत्तर -
यहां दो अलग प्रश्न है
पहला लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं अगर घर से बाहर नहीं निकल सकते ?
लोगों की मदद करने के लिए घर से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। जहाँ हो जिस हालत में वहाँ से मदद की जा सकती है। मदद करने के लिए सबसे आवश्यक है भावना और ईच्छाशक्ति।
इसको इस तरह से समझने की कोशिश करते हैं ...
एक होती है प्रत्यक्ष रूप से मदद, जो मोटे तौर पर सब लोगों को दिखती है। इस तरह की मदद अक्सर दिखावे के लिए भी की जाती है। हमेशा दिखावा ही है, ऐसा बिलकुल नहीं है। तो जब कोई मौका मिले तो किसी की मदद कर दिया। कभी किसी को पानी पिला देना, किसी को थोड़े पैसे से मदद कर देना, कोई सेवा दान कर देना इत्यादि.
दूसरे मदद का तरीका है, परोक्ष रूप से। इस तरह के मदद में मदद करने वाली की ख्याति की संभावना बहुत कम रहती है।
जैसे समाज के लिए कितने लोग या कितनी संस्थाएं आपसे बिना उम्मीद रखे काम करती रहती हैं, उनके बारे में हमें जानकारी भी नहीं होती है।
मैं निजी तौर पर परोक्ष रूप के मदद को ज्यादा उत्तम मानता हूं, यह आपके सेवा की गहरी भावना को दिखाता है। यहां अहंकार की स्थिति कम रहती है।
एक और बात यहां गौर कर लेने योग्य है कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं है, बस भावना बड़ी और गहरी रहनी चाहिए। हो सकता है एक ग्लास पानी की मदद से किसी इन्सान या किसी पशु-पक्षी की जान बच जाए।
अब समझते हैं, कुछ ऐसी चीजें जो घर से मदद की जा सकती है।
पशु पक्षी के लिए खाने पीने की व्यवस्था, अपनी आय के अनुसार लोगों की धन दान से मदद, घर अथवा पड़ोस के बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं संस्कार का दान आदि।
एक और बड़ी गहरी मदद की जा सकती है, अगर गहराई से समझ सको इसे। लोगों में मानसिक अशांति बहुत है। हमेशा से रही है लेकिन आज के भाग - दौड़ के समाज में ऐसी स्थिति और ज्यादा हो गई है। ऐसे में उनके सामने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश करो कि कैसे विपरीत स्थिति में शान्त रहा जा सकता है।
यह बहुत ही गहरी मदद होगी लोगों के लिए, इन्सान या जानवर किसी भी शान्त मनुष्य के साथ दो क्षण मिल कर भी शांति का अनुभव करते हैं।
अपने जीवन में भी अनुभव से देखा जा सकता है। जब हम बहुत परेशान होते हो तो चाहते हो कोई एक शान्त अनुभवी इन्सान मिले जिसके पास बैठ के शान्ति का अनुभव किया जा सके। शान्त वातावरण की खोज में लोग पहाड़ों में जाते हैं, नदी किनारे बैठते हैं, जंगलों में भटकते हैं, मंदिरों में जाते हैं। शान्त जानवर के साथ बैठकर अथवा खेलकूद कर भी शान्ति की स्थिति को पाने का प्रयास किया जाता है।
अगर ऐसी शान्त स्थिति अपने आस - पास बना सको तो इससे गहरी मदद नहीं हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले स्वयं को हर परस्थिति में शान्त बनाने का प्रयास करते रहना होगा।
अब दूसरे प्रश्न को लेते हैं, क्या मेरे ग्रुप से जुड़ सकते हैं ?
- हॉं! बिलकुल,
लेकिन यह समझ लेते हैं ध्यान कक्षा ( ग्रुप ) का उद्देश्य क्या है ?
महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण आदि हजारों लोगों ने शान्ति की स्थिति बनाने का प्रयास किया है। ध्यान कक्षा भी बस लोगों के बीच शान्ति के प्रसार के लिए एक और प्रयास है। यहां लोगों को योग एवम ध्यान आदि के बारे में मार्गदर्शन किया जाता है। इस संस्था का प्रचार मैंने कभी किया नहीं, जितने लोग जुड़ें हैं वे वही लोग हैं जो शान्ति के मार्ग पर चलना चाहते हैं, जो अपने आस पास एक गहरी शान्ति का वातावरण पैदा करना चाहते हैं।
जो भी लोग अपने आस-पास शान्ति की स्थिति बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, मैं उन सब जाने - अनजाने लोगों से आत्मीयता के स्तर पर जुड़ा हुआ हूं।
परम शान्ति की तलाश में ध्यान एक गहरा मार्ग है, ध्यान मार्ग का हर एक अभ्यर्थी ध्यान कक्षा का सदस्य है। इस संस्था के विचारों को लोगों तक पहुंचा कर भी लोगों की मदद की जा सकती है और संस्था के प्रति सेवा भाव प्रदर्शित किया जा सकता है।
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