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कितीही प्रयत्न केले
मला पोक्त वागता येत नाही.

लपवाव म्हटल खूप
पण माझं बालिशपण झाकत नाही

तोडाव म्हटल नात वर्धक्याशी ,
हे वयाच चालन थांबत नाही

वयानुसार वागावं म्हटल तर ,
माझ अवखळपण घटत नाही

कवटाळून धरलं कितीही
बालपण ठरत नाही ,

अन् वय वाढल कितीही
तरी माझं यौवन सरत नाही..
सुवर्णा आंधळे ©®
*यह रचना दिल को छू गई।*

तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।

सब कुछ पाया इस जीवन में,
फिर भी इच्छाएं बाकी हैं
दुनिया से हमने क्या पाया,
यह लेखा - जोखा बहुत हुआ,
*इस जग ने हमसे क्या पाया,
बस ये गणनाएं बाकी हैं।*

इस भाग-दौड़ की दुनिया में
हमको इक पल का होश नहीं,
वैसे तो जीवन सुखमय है,
पर फिर भी क्यों संतोष नहीं !

क्या यूं ही जीवन बीतेगा,
क्या यूं ही सांसें बंद होंगी ?
औरों की पीड़ा देख समझ
कब अपनी आंखें नम होंगी ?
मन के अंतर में कहीं छिपे
इस प्रश्न का उत्तर बाकी है।

मेरी खुशियां, मेरे सपने
मेरे बच्चे, मेरे अपने
यह करते - करते शाम हुई
इससे पहले तम छा जाए
इससे पहले कि शाम ढले

कुछ दूर परायी बस्ती में
इक दीप जलाना बाकी है।
तीन पहर तो बीत गये,
बस एक पहर ही बाकी है।
जीवन हाथों से फिसल गया,
बस खाली मुट्ठी बाकी है।

*जीवन की सारी दौड़ केवल अतिरिक्त के लिए है! अतिरिक्त पैसा, अतिरिक्त पहचान, अतिरिक्त शोहरत, अतिरिक्त प्रतिष्ठा, यदि यह अतिरिक्त पाने की लालसा ना हो तो जीवन एकदम सरल है.*

*आइए, मंथन करे*
अंधेरों के घने साए में
धूप के कुछ किस्से हैं,,
दुख है अगर जीवन में
सुख के भी तो हिस्से हैं

उजली रौशन यादों में
जज़्बातों के ठिकाने हैं,,
लम्हें हैं कुछ बेमायने तो
कुछ पलों के मायने हैं

आज है अगर बुझा बुझा
कल के निखरे आईने हैं,,
गुज़रा जो सफ़र कठिन
मुक़ाम अच्छे भी तो आने है!!
✍️✍️
*"अच्छी थी, पगडंडी अपनी,*
*सड़कों पर तो, जाम बहुत है!!*

*फुर्र हो गई फुर्सत, अब तो,*
*सबके पास, काम बहुत है!!*

*नहीं जरूरत, बूढ़ों की अब,*
*हर बच्चा, बुद्धिमान बहुत है!!*

*उजड़ गए, सब बाग बगीचे,*
*दो गमलों में, शान बहुत है!!*

*मट्ठा, दही, नहीं खाते हैं,*
*कहते हैं, ज़ुकाम बहुत है!!*

*पीते हैं, जब चाय, तब कहीं,*
*कहते हैं, आराम बहुत है!!*

*बंद हो गई, चिट्ठी, पत्री,*
*व्हाट्सएप पर, पैगाम बहुत है!!*

*झुके-झुके, स्कूली बच्चे,*
*बस्तों में, सामान बहुत है!!*

*नही बचे, कोई सम्बन्धी,*
*अकड़,ऐंठ,अहसान बहुत है!!*

*सुविधाओं का,ढेर लगा है यार..*
*पर इंसान, परेशान बहुत है!!*
🌷🙏सुप्रभात🙏🌷
🪔 *श्री स्वामी समर्थ* 🪔. . 🌹...🪔 *शुभ दिपावली*🪔 🌹आपणा सर्वांना दिवाळीच्या लक्ष लक्ष शुभेच्छा 🌹 तुम्हाला सर्वांना ही दिवाळी आनंदाची,सुखसमृध्दीची, भरभराटीची,आरोग्य पूर्ण व सर्व मनोकामना पूर्ण करणारी जावो. स्वतःशी स्वतःला जोडण्या साठी मनामनात लक्ष्य लक्ष्य दिव्यांचा प्रकाश उजळू दे ही
‼️ *श्री स्वामी समर्थ चरणी प्रार्थना*‼️
🪔‼️
पावसाळी कवी
डोलणारं शेत शिवार
यावर रचना करतात
अनू सुगीच्या दिवसांत
आनंदाने गाणी गातात

पोळलेलं काळीज
करपलेल्या पिकांच्या दिवसांत
पावसाळ्यात उगवणारे
कवी गायक कुठं गायब होतात ?

ज्यांची शेती नाही.
ते शेतकऱ्यांना सहा हजार
अनुदान मिळाले बाता करतात
खतांच्या दरात हिसकावून घेतले
यावर त्यांच्या दातखिळी बसतात

खादीचे कडक कपडे घालणारे
पंचमहाली राहतात
पण विणकर अन् कापूस उत्पादक
नेहमीच नागडे राहतात
#राजू_वाघमारे
सांगली
३०/१०/२०२२.
निवडणूकीचे वारे

निवडणूकीचे वारे
जोरात लागलेत वाहू
एकमेकांना विरोधक
पाण्यात लागले पाहू...

जो तो आपल्या कर्तृत्वाचा
वाचू लागलेत पाढा
शहाणपणाचा आव आणून
पाजू लागलाय काढा...

खोदून वारकाचा उकंडा
काढू लागलेत केस
विकासावर बोलू जाता
येतोय तोंडाला फेस...

भाषणात शब्दाचा मारा
गद्दार आणिक खोकी
धर्माच्या नावाखाली
भडकवू लागलेत डोकी...

काल परवाचे मित्र
आज खुशाल झाडती फैरी
खुर्चीच्या लालसेपोटी
जणू झालेत हाड वैरी...

घराघरात पडली फुट
वर करुन येती बाह्या
प्रत्येकाचा वेगळा झेंडा
कुणी उरले ना समजाया...

सुटता निवडणूकीचे वारे
कसे बदलतात रंग
सामान्य मतदार राजा
बघूनच राहतोय दंग...

© खंदारे सुर्यभान गुणाजी
नांदेड- 9673804554
*नागासाकी का स्टैंड बॉय....*

यह 1945 में 09 अगस्त को जापान के नागासाकी पर परमाणु बमबारी के बाद ली गई एक ऐतिहासिक तस्वीर है। इस तस्वीर में लगभग 10 साल का एक लड़का अपने मृत भाई को पीठ पर बांधे हुए एक श्मशान के बाहर खड़ा है, और अंतिम संस्कार का इंतजार कर रहा है। एक सैनिक ने उससे कहा *"अपने मृत भाई को नीचे रख दो। तुम्हें बोझ लगेगा।"* तो बच्चे ने कहा *"यह बोझ नहीं है, मेरा भाई है..!"*
सिपाही समझ गया और चुप हो गया।

तब से यह तस्वीर जापान में एकता का प्रतीक बन गई है।

*भाई बोझ नहीं होते है है...* गिर जाए तो उठा लो, थक जाए तो सहारा दो, गलती हो जाए तो माफ कर दो, क्योंकि भाई भाई है, बोझ नहीं है।

कभी दुनिया उसे छोड़ भी दे, तो उसे अपनी पीठ पर उठा लो। .उसकी मदद करो..।

*जो अपने खून का नहीं - वह किसी का नहीं...*

थोड़े से धन संपत्ति के लिए अपनो से रिश्ता तोड़ने वालो नंगे आये थे दुनिया में नंगे ही चले जाओगे।

*बात कड़वी है पर सच्ची है...*✍️🙏
!!! एक उलझन है जो सुलझती नही !!!

तस पहायला गेल तर समस्या भरपूर आहेत पण त्यातल्या त्यात एक समस्या अशी आहे जी सुटत नाहीय

विकोपाला जाणारे वाद आणि त्यातून उत्पन्न होणार नैराश्य
काहिच ऐकुन न घेणारे स्वकिय आणि डोक्यात बुद्धी नसणारे परकिय
नुसताच डोक्याला ताप आहे

एक समस्या आहे जी सुटता सुटत नाहिय

सुट्यांमध्ये मारलेली मौज पाहता
वेळेची कानाखाली बसलेली चपराक महाग आहे
एका स्वप्नापयी कित्येक स्वप्न बेचिराख आहे
आनंदाच्या भरातही मनात प्रचंड राग आहे

तस पहायला गेल तर समस्या एकच आहे जी सुटता सुटत नाहिय

प्रेमाचा झोलझाल सार्या दुनियेत आहे
पण आवडतीच्या मनातील झोल जरा विचिञच आहे
दुनिया प्रेमाची असली तरी त्यात अंगार आहे
दाही दिशा जळत असतांना मनात माञ गडद अंधार आहे

तशी समस्या एकच आहे
जी सुटता सुटत नाहीय

(आजच्या सर्वात सुंदर कट्टूला अर्पण)
*चहा*

विचार येतो मनात
चहात असं काय?
लोक म्हणतात झोप उडते
खरंच असतं अस यामध्ये काय?.....1

चहाचे प्रकार किती
वेगवेगळ्या नावांनी चहाची ख्याती
कौतुक चहाचे करता किती
एक घुट पिला तरी मिळते शांती.....2

संध्याकाळ झाली की पुकारा होतो
हळूच चहा सोबत भजे मागवतो
म्हणतात चहा घेताच उत्साह वाढतो
समजत नाही चहा म्हणजे काय प्रकार असतो?.....3

मी आहे योगा मास्टर
देईल नाही कोणाला चहाची ऑफर
मी म्हणते गोड नको कडूच प्या
वाटलंच तर चहा ऐवजी दूधच प्या.....4

मी म्हणते चहा नको
कडू काढा प्या
रोगाला आमंत्रण कशाला देता
चहा सोडा रोगमुक्त व्हा.....5

*सौ.वैजयंती विकास गहूकर*
*योगा टीचर*
*जिल्हा. चंद्रपूर*
[email protected]
*मृत्यु क्यों आवश्यक है?*

*हर कोई मृत्यु से डरता है, लेकिन जन्म और मृत्यु सृष्टि के नियम हैं... यह ब्रह्मांड के संतुलन के लिए आवश्यक है। इसके बिना, मनुष्य एक-दूसरे पर हावी हो जाते। कैसे? इस कहानी से जानिए...*

एक बार, एक राजा एक संत के पास गया, जो राज्य के बाहर एक पेड़ के नीचे बैठे थे। राजा ने पूछा, "हे स्वामी! *क्या कोई औषधि है जो अमरता दे सके? कृपया मुझे बताएं।"*

संत ने कहा, "हे राजा! आपके सामने जो दो पर्वत हैं, उन्हें पार कीजिए। वहाँ एक झील मिलेगी। उसका पानी पीने से आप अमर हो जाएंगे।"

राजा ने पर्वत पार कर झील पाई। जैसे ही वह पानी पीने को झुके, उन्होंने कराहने की आवाज सुनी। आवाज का पीछा करने पर उन्होंने एक बूढ़े और कमजोर व्यक्ति को दर्द में देखा।

राजा ने कारण पूछा, तो उस व्यक्ति ने कहा, *"मैंने इस झील का पानी पी लिया और अमर हो गया*। जब मेरी उम्र सौ साल की हुई, तो मेरे बेटे ने मुझे घर से निकाल दिया। मैं पचास साल से यहाँ पड़ा हूँ, बिना किसी देखभाल के। मेरा बेटा मर चुका है, और मेरे पोते अब बूढ़े हो चुके हैं। मैंने *खाना-पीना बंद कर दिया है, फिर भी जीवित हूँ।"*

राजा ने सोचा, *"बुढ़ापे के साथ अमरता का क्या फायदा?* अगर मैं अमरता के साथ यौवन भी प्राप्त कर सकूँ तो?" राजा वापस संत के पास गए और समाधान पूछा, "कृपया मुझे अमरता के साथ यौवन प्राप्त करने का उपाय बताएं।"

संत ने कहा, "झील पार करने के बाद, आपको एक और पर्वत मिलेगा। उसे पार करिए, और एक पेड़ मिलेगा जिस पर पीले फल लगे होंगे। उन फलों में से एक खा लीजिए, *और आपको अमरता के साथ यौवन भी मिल जाएगा।"*

राजा ने दूसरा पर्वत पार किया और एक पेड़ देखा, जिस पर पीले फल लगे थे। जैसे ही उन्होंने फल तोड़ने के लिए हाथ बढ़ाया, उन्हें तेज बहस और लड़ाई की आवाजें सुनाई दीं। उन्होंने सोचा, इस सुनसान जगह में कौन झगड़ सकता है?

*राजा ने चार जवान आदमियों को ऊंची आवाज़ में झगड़ते देखा।* राजा ने पूछा, "तुम लोग क्यों झगड़ रहे हो?" उनमें से एक बोला, "मैं 250 साल का हूँ और मेरे दाहिने वाले व्यक्ति की उम्र 300 साल है। वह मुझे मेरी संपत्ति का हिस्सा नहीं दे रहा।"

जब राजा ने दाहिने वाले व्यक्ति से पूछा, उसने कहा, "मेरा पिता, जो 350 साल का है, *अभी भी जीवित है और उसने मुझे मेरा हिस्सा नहीं दिया। तो मैं अपने बेटे को कैसे दूं?"*

उस आदमी ने अपने 400 साल के पिता की ओर इशारा किया, जिन्होंने भी वही शिकायत की। उन्होंने राजा से कहा कि संपत्ति के इस अंतहीन झगड़े की वजह से गांववालों ने उन्हें गांव से निकाल दिया है।

राजा हैरान होकर संत के पास लौटे और बोले, *"धन्यवाद, आपने मुझे मृत्यु का महत्व समझाया।"*

संत ने कहा, *"मृत्यु के कारण ही इस संसार में प्रेम है।"*

*"मृत्यु के बारे में चिंता करने के बजाय, हर दिन और हर पल को खुशी से जियो। खुद को बदलो, दुनिया बदल जाएगी।"*

1. जब आप स्नान करते समय भगवान का नाम लेते हैं,तो वह एक पवित्र स्नान बन जाता है।

2. जब आप खाना खाते समय नाम लेते हैं,तो वह भोजन प्रसाद बन जाता है।

3. जब आप चलते समय नाम लेते हैं,तो वह एक तीर्थ यात्रा बन जाती है।

4. जब आप खाना पकाते समय नाम लेते हैं,तो वह भोजन दिव्य बन जाता है।

5. जब आप सोने से पहले नाम लेते हैं,तो वह ध्यानमय नींद बन जाती है।

6. जब आप काम करते समय नाम लेते हैं, तो वह भक्ति बन जाती है।

7. जब आप घर में नाम लेते हैं, तो वह घर मंदिर बन जाता है..!!

*🙏🏾🙏🙏🏽जय श्री कृष्ण*🙏🏻🙏🏼🙏🏿
*रिटायर वडील...!!!*
😢
*आज जेवून झाल्यावर*
*वडील बोलले...*

" *मी आता रिटायर्ड होतोय.*
*मला आता नवीन कपडे*
*नको. जे असेल, ते मी*
*जेवीन. रोज वाचायला*
*पेपर नको. आजपासून*
*बदामाचा शिरा नको, मोटर गाडीवर फिरण बंद,बंगला नको,बेड नको,एका कोपर-यात थोडी जागा झोपण्यास मिळाली तरी खुप झाल,आणि हो तुमचे सुनबाईचे मिञ व मैञिनी चार पाहुणे आलेतर मला आगोदर सांगा मी बाहेर जाईल पण त्यांच्या समोर बाबा तुम्ही बाहेर बसा😡 आस सांगु नका तुम्ही मला*
*जसं ठेवाल, तसं राहीन."*😢😢😢

कांहीतरी कांपताना सुरीनं
बोट कापलं जावं आणि
*टचकन पाणी डोळ्यात* यावं,
काळीजच तुटावं, अगदी तसं
झालं...

एवढंच कळलं, की आजवर
जे जपलं, ते सारंच फसलं...

कां *वडीलांना* वाटलं, ते
ओझं होतील माझ्यावर...?🤔

मला त्रास होईल, जर ते गेले
नाहीत कांमावर...?

ते घरात राहिले, म्हणून
कोणी *ऐतखाऊ* म्हणेल...

की त्यांची घरातली किंमत
*शून्य* बनेल...???

आज का त्यांनी
दम दिला नाही...?

"काय हवं ते करा, माझी
तब्बेत बरी नाही, मला
कामावर जायला जमणार
नाही..."

खरंतर हा अधिकार आहे,
त्यांचा सांगण्याचा. पण ते
काकुळतीला कां आले...?

ह्या विचारातच माझं मनं
खचलं. नंतर माझं उत्तर
मला मिळालं...

जसजसा मी मोठा होत
गेलो, *वडीलांच्या* कवेत
मावेनासा झालो.

तेव्हा नुसतं माझं शरीरच
वाढत नव्हतं, तर त्याबरोबर
वाढत होता तो माझा *अहंकार*
आणि त्यानं वाढत होता,
तो विसंवाद...

आई जवळची वाटत होती.
पण, *वडीलांशी* दुरावा
साठत होता...

*मनांच्या खोल तळापर्यंत*
*प्रेमच प्रेम होतं.* पण, ते
कधी *शब्दांत* सांगताच
आलं नाही...

*वडीलांनीही* ते दाखवलं
असेल. पण, दिसण्यांत आलं
नाही.

मला लहानाचा मोठा करणारे
*वडील,* स्वःताच स्वतःला
लहान समजत होते...

मला ओरडणारे - शिकवणारे
*वडील,* कां कुणास ठाऊक 🤔
बोलतांना धजत होते...

*मनानं कष्ट करायला तयार*
*असलेल्या वडीलांना,*
शरीर साथ देत नव्हतं...

*शून्यातून सारं उभं केलेल्या*
*तपस्वीला,* घरांत नुसतं,
बसू देत नव्हतं...

*हे मी नेमकं ओळखलं...!!*

खरंतर मी कामावर जायला
लागल्यापासून, सांगायचंच
होतं त्यांना, की *थकलाहांत*,तुम्ही
आराम करा. पण,

आपला अधिकार नव्हे,
सूर्याला सांगायचा, की
*“मावळ आता”...!!*

लहानपणीचे हट्ट पुरवणारे
*वडील...*

मधल्या वयांत अभ्यासासाठी
ओरडणारे *वडील...*

आणि नंतर चांगलं वागण्यासाठी
कानउघडणी करणारे *वडील...*

आजवर सारं कांही देऊन
कसलीच अपेक्षा न ठेवता,
जेव्हा खुर्चीत शांत बसतात,
तेव्हा वाटतं, की कांही जणू
*आभाळंच खाली झुकलंय !!*

कधीतरी या *आभाळाला*
*जवळ बोलवून* खूप कांही
*बोलावसं वाटतं...!!*

पण तेव्हा लक्षांत येतं, की
*आभाळ कधीच झुकत*
*नाही, ते झुकल्यासारखं*
*वाटतं...!!*

आज माझंच मला कळून
चुकलं, की *आभाळाची*
*छत्रछाया ही खूप कांही*
*देऊन जाते...!!!*

*सर्व रिटायर्ड आणि जेष्ठ*
*नागरीकांसाठी समर्पित...!!!*🪷🙏🏻🪷🙏🏻🪷
*कुणास ठाऊक कुणाची रचना आहे ते ?*
*फारच सुंदर लिहिलंय, अंतर्मुख करायला लावणारं😥*
︵︷︵︷︵︷︵︷︵︷
*कांही राहून तर नाही ना गेलं*
︶︸︶︸︶︸︶︸︶︸
तीन महीन्याच्या बाळाला
दाईपाशी ठेवून
कामावर जाणाऱ्या आईला
दाईनं विचारलं ~
कांही राहून तर नाही ना गेलं !
पर्स, किल्ल्या सगळं घेतलंत ना ?
आता ती कशी हो, हो म्हणेल ?
पैशापाठी पळता-पळता
सगळं कांही मिळविण्याच्या
महत्वाकांक्षेपोटी
ती जिच्यासाठी एवढा आटापिटा
करतेय तीच तर राहून गेलीय !
😑
लग्नात नवऱ्या मुलीस सासरी
पाठवताना लग्नाचा हाॅल
रिकामा करून देताना
मुलीच्या आत्यानं विचारलं ~
दादा, कांही राहून तर नाही गेलं ना ?
चेक कर जरा नीट..!
बाप चेक करायला गेला, तर
वधूच्या खोलीत
कांही फुलं सुकून पडलेली दिसली.
सगळंच तर मागं राहून गेलंय.
२१ वर्षे जे नाव घेऊन आपण
जिला लाडानं हाक मारत होतो,
ते नाव तिथंच सुटून गेलंय, आणि
त्या नावापुढे आतापर्यंत
अभिमानानं जे नाव लागत होतं,
ते नावही आता तिथंच राहून गेलंय.

दादा, बघितलंस ?
कांही मागे राहून तर नाही ना गेलं ?
बहिणीच्या या प्रश्नावर
भरून आलेले डोळे लपवत बाप
कांही बोलला तर नाही, पण
त्याच्या मनात विचार आला~
सगळं कांही तर इथंच राहून गेलंय .!
😔
मोठी मनिषा मनी बाळगून मुलाला
शिक्षणासाठी परदेशात पाठवलं होतं,
आणि तो शिकून तिथंच सेटल झाला.
नातवाच्या जन्मावेळी मोठ्या
मुश्किलीनं तीन महिन्यांचा
व्हिसा मिळाला होता,
आणि निघतेवेळी मुलानं विचारलं ~
बाबा सगळं कांही चेक केलंय ना ?
कांही राहून तर नाही ना गेलं ?
काय सांगू त्याला, की आता..
आता राहून जाण्यासारखं
माझ्यापाशी उरलं तरी काय आहे ..!
😔
सेवानिवृत्तीचे दिवशी
पी.ए. नं आठवण करून दिली ~
चेक करून घ्या सर ..!
कांही राहून तर नाही ना गेलं ?
थोडं थांबलो, आणि मनात विचार
आला, सगळं जीवन तर
इथंच येण्या-जाण्यात निघून गेलं.
आता आणखी काय राहून
गेलं असणार आहे?
😔
स्मशानातून परतताना मुलानं ...
मान वळवली पुन्हा एकदा,
चितेकडे पाहण्यासाठी ...
पित्याच्या चितेच्या
भडकत्या आगीकडे पाहून
त्याचं मन भरून आलं.
धावतच तो गेला
पित्याच्या चेहऱ्याची एक
झलक पाहण्याचा
असफल प्रयत्न केला....
आणि तो परतला.
मित्रानं विचारलं ~
काही राहून गेलं होतं कां रे ?

भरल्या डोळ्यांनी तो बोलला ~
नाही , कांहीच नाही राहिलं आता.
आणि जे काही राहून गेलंय,
ते नेहमीच माझ्या सोबत राहिल .!
😌
एकदा... थोडा वेळ काढून वाचा,
कदाचित ...जुना काळ आठवेल,
डोळे भरून येतील, आणि
आज मन भरून जगण्याचं
!!.. कारण मिळेल ..!!

*मित्रांनो ! कुणास ठाऊक ?*

*केव्हा या जीवनाची संध्याकाळ होईल.*

*असं कांही होण्याआधी*
*सर्वांना जवळ घ्या,*
*त्यांच्या पाठीवर हात फिरवा.*
*त्यांच्याशी प्रेमानं बोलून घ्या*
*जेणेकरुन कांही राहून जाऊ नये ..!!!*

🌹🙏💐
*छोटयाश्या पादुका, इवलास कमांडलू. हसतंय ना आपल स्वामी बाळ त्याला मी कस सांभाळू ? 🌹*

*डोळ्यातूनी वाहत होत्या पाण्याच्या अदृश्य धारा...*

*वेदना चा, बनऊन पंखा घालत होते स्वतःला वारा!🌹*

*स्वामी बाळा तुझी परीक्षा, असते खूप कठीण, प्रत्येक वळणावर पाप पुण्य हिशोबा ची द्यावी लागते साक्ष 🙏*

*तु हसतोय स्वामी बाळा मनमुराद,*
*लावुनी शिव टिळा, तुळशी माळे रुळे ढेरीवर, भक्तांसी न्याय देई वरचे वरी 🌹*

*🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹*
2024/12/24 17:39:28
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