मुकर जाना भी क्या ख़ूब उनकी आदत है,
उनके झूठ पर यक़ीन करना मेरी आदत है...!!
उनके झूठ पर यक़ीन करना मेरी आदत है...!!
कहीं कोई जल रहा कहीं कोई मर रहा,
ये नशा है इश्क़ का नशा कहीं उतर रहा...!!
ये नशा है इश्क़ का नशा कहीं उतर रहा...!!
एक बगावत की चिंगारी थी,
सारी दुनियां जल गई...!!
सारी दुनियां जल गई...!!
क्या लिखूं
तुझे लिखूं या तेरी यादों को लिखूं
तेरे साथ बीते पलों को लिखूं
या तेरे ना होने के एहसास लिखूं
तेरी उस मुस्कान को लिखूं
या तेरी उन नजरों को लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं
तुझे लिखूं या तेरे ना होने के एहसास को लिखूं...!!
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तुझे लिखूं या तेरी यादों को लिखूं
तेरे साथ बीते पलों को लिखूं
या तेरे ना होने के एहसास लिखूं
तेरी उस मुस्कान को लिखूं
या तेरी उन नजरों को लिखूं
आखिर लिखूं तो क्या लिखूं
तुझे लिखूं या तेरे ना होने के एहसास को लिखूं...!!
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जो रो रहे हैं उनका शायद रोना ज़रूरी था,
बेवज़ह कुछ लोगों को रुलाया बहुत है....!!
बेवज़ह कुछ लोगों को रुलाया बहुत है....!!
वो : कैसी रही दीवाली??
मै : वो सिलसिले
वो शौक
वो निसबत नहीं रही
वो दिल नहीं रहा
वो तबीयत नहीं रही...!!
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मै : वो सिलसिले
वो शौक
वो निसबत नहीं रही
वो दिल नहीं रहा
वो तबीयत नहीं रही...!!
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बहुत जवाब दे दिये
अब सवाल को सवाल ही रहने देते हैं...
सफाई दे दे कर थक गए
अब खुद पर इल्ज़ाम ही रहने देते हैं...
जब वो खुश है हमें इतना रूलाकर
तो उनके चेहरे पर इस मुस्कुराहट को ऐसे ही रहने देते हैं...
ज़िंदगी में दर्द तो आते-जाते रहेंगे
गम ही तो है थोड़ा और रहने देते हैं...!!
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अब सवाल को सवाल ही रहने देते हैं...
सफाई दे दे कर थक गए
अब खुद पर इल्ज़ाम ही रहने देते हैं...
जब वो खुश है हमें इतना रूलाकर
तो उनके चेहरे पर इस मुस्कुराहट को ऐसे ही रहने देते हैं...
ज़िंदगी में दर्द तो आते-जाते रहेंगे
गम ही तो है थोड़ा और रहने देते हैं...!!
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कुछ तमाशा करो और कुछ नया तमाशा हो,
ये दुनियां आए दिन नए करतब देखती रहती है,
अच्छा अरे अच्छा जानें दो जानें ही दो,
लोगों को बुरा दिखाओ आँखें बुरा खोजती रहती हैं...!!
ये दुनियां आए दिन नए करतब देखती रहती है,
अच्छा अरे अच्छा जानें दो जानें ही दो,
लोगों को बुरा दिखाओ आँखें बुरा खोजती रहती हैं...!!
मैनें न तुम्हें जाना ना जानना चाहता हूं,
तुम अब मैं और मैं तुम हो जाना चाहता हूं..!!
तुम अब मैं और मैं तुम हो जाना चाहता हूं..!!
ये धुन जो सुन रहे हो, उसकी सदा लगती है
साँस लेती है वो कि सुबह की सबा लगती है...
अब हम मंदिर-ओ-मस्जिद में क्यों जायें
वो बोलती है तो आयत-ए-खुदा लगती है...!!
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साँस लेती है वो कि सुबह की सबा लगती है...
अब हम मंदिर-ओ-मस्जिद में क्यों जायें
वो बोलती है तो आयत-ए-खुदा लगती है...!!
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वो सिलसिले कहां गए तेरे साथ रोज़ टहल आने के,
मैं अपनें मुकद्दर को क्या कहूं है तो मेरा अपना है..!!
मैं अपनें मुकद्दर को क्या कहूं है तो मेरा अपना है..!!
एक इबादत हम भी कर रहे हैं उनकी सलामती के लिए,
एक इबादत वो भी कर रहे होंगे मेरी बर्बादी के लिए,
ख़ुदा तो एक ही है,
देखते हैं आख़िर में क्या होता है...!!
एक इबादत वो भी कर रहे होंगे मेरी बर्बादी के लिए,
ख़ुदा तो एक ही है,
देखते हैं आख़िर में क्या होता है...!!
थक कर लेटते ही उसको मरा मान लिया गया,
अजीब हैं लोग भी मार देने का उतावलापन भी क्या कमाल है...!!
अजीब हैं लोग भी मार देने का उतावलापन भी क्या कमाल है...!!
ख़ाहिश भी ऐसी कि नया जिस्म मिले रोज़,
दिखावा भी ऐसा की लोग परवरदिगार मान लें..!!
दिखावा भी ऐसा की लोग परवरदिगार मान लें..!!
नक़्शा-ए-दिल-फ़िगार तेरी उल्फ़त में तिश्ना लब रहा
काश इतना आसाँ होता
तेरी फुर्कत में मरना जानाँ..!!
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काश इतना आसाँ होता
तेरी फुर्कत में मरना जानाँ..!!
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कुछ अधुरी ख्वाहिशों का
सिलसिला हैं ज़िंदगी...!!
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सिलसिला हैं ज़िंदगी...!!
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ये बचाएंगे इस जग जहान के परवरदिगार को,
वो, जिनके पास ना नौकरी है, ना अपना घर है,
जो परिवार का तक पेट पालने की काबिलियत नहीं रखते,
जानकारी के नाम पर खोखले भाषण है उनके ज़हन में,
पढ़ाई में बस पास होने भर की चंद फ़िज़ूल किताबों की लाईनें हैं,
भीड़ हैं ये...
किसी के इशारों पर खुश और उन्हीं के लिए दुखी,
ताकत बस बातों की है, ना तन की ना धन की ना अध्यात्म की,
पिता की रोटी को इज़्ज़त नहीं मां के दुलार को ठोकर,
बाक़ी मंदिर मस्जिद भरे दे रहे लोग वहां रो रो कर,
दावा उसे बचाने का,
हास्यास्पद है,
जाती के नारे, धर्म के प्रचार, भाषा का झगड़ा, मृत्यु के बाद का सच, पूर्व जन्मों का रहस्य, मजहबी किताबों की श्रेष्ठता, ग्रह नक्षत्रों की चाल, पड़ोसी दुश्मन, सब पर चर्चा ख़ूब है...
हम क्या कर रहे हैं क्या करना है कैसे जीना है इसी बात की नहीं पूछ है....!!
वो, जिनके पास ना नौकरी है, ना अपना घर है,
जो परिवार का तक पेट पालने की काबिलियत नहीं रखते,
जानकारी के नाम पर खोखले भाषण है उनके ज़हन में,
पढ़ाई में बस पास होने भर की चंद फ़िज़ूल किताबों की लाईनें हैं,
भीड़ हैं ये...
किसी के इशारों पर खुश और उन्हीं के लिए दुखी,
ताकत बस बातों की है, ना तन की ना धन की ना अध्यात्म की,
पिता की रोटी को इज़्ज़त नहीं मां के दुलार को ठोकर,
बाक़ी मंदिर मस्जिद भरे दे रहे लोग वहां रो रो कर,
दावा उसे बचाने का,
हास्यास्पद है,
जाती के नारे, धर्म के प्रचार, भाषा का झगड़ा, मृत्यु के बाद का सच, पूर्व जन्मों का रहस्य, मजहबी किताबों की श्रेष्ठता, ग्रह नक्षत्रों की चाल, पड़ोसी दुश्मन, सब पर चर्चा ख़ूब है...
हम क्या कर रहे हैं क्या करना है कैसे जीना है इसी बात की नहीं पूछ है....!!