प्रश्न -
मेरे मन में बहुत दुःख का कारण क्या है? जबकि मेरे अंदर ज्यादा कुछ पाने की लालसा नहीं है, जो मिला उसमें संतुष्टि है। फिर भी दुनियाँ की स्थिति देख के बहुत गहरे दुःख का अनुभव होता है।
उत्तर -
२ उत्तर हो सकते हैं, गहराई से समझने की कोशिश करना -
१. पहला इसे कर्म फल के सिद्धान्त पर छोड़ सकती हो, जैसे पुराने और पिछले जन्मों के कर्म। इसको थोड़ा और स्पष्ट समझने के लिए ऐसा समझो जैसे किसी ने 15 साल की उम्र में कोई गलत काम किया और सजा उसे 70 साल की उम्र में मिल रही है, जब वह एक अच्छा इन्सान बन चुका है।
जब तुम उसे 70 में देखोगे तो तुम्हें लगेगा गलत हो रहा है, इसे ही प्रारब्ध कर्म कहा जाता है।
२. दूसरा अन्वेषण करो, खोज करो आखिर दुःख है कहां ? ऐसा क्या है जो दुःख जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तुम्हारे सामने।
बाहरी सारी घटना तो एक साधन मात्र हैं वह दुःख नहीं हैं। जैसे कोई बस या ट्रेन से कोई गंतव्य तक जाता है, लेकिन बस या ट्रेन ही गंतव्य नहीं है।
इसको स्पष्ट समझने के लिए,
तुम्हें दुःख तभी होता है, जब तुम देखती हो या सुनती हो या कह लो इस तरह के विचार कर लेती हो।
लेकिन तुम्हें यह देखने, सुनने को न मिले तो दुनियां से दुःख ख़तम हुआ या तुम्हारा दुःख कम हो गया ? विचार करना। दुनियाँ में दिखने वाले दुःख में कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तुम्हारे दुःख का एक मात्र कारण है मोह! ( Attachment )
अगर तुमने पहले उत्तर को चुना तो सब कर्म सिद्धान्त पर छोड़ दो। सब अपने कर्मों एवम प्रारब्ध का भोग कर रहे हैं। सही और गलत दोनों।
अगर तुमने दूसरे उत्तर को चुना तो तुम्हें खोज करने होंगे, उस खोज का ही नाम योग एवम ध्यान है।
ऊपर के दोनों सिद्धान्त गलत या अलग नहीं हैं, जब तक स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ जाते तब तक अलग से प्रतीत होते रहते हैं और बिना अनुभव इनको एक समझा भी नहीं जा सकता है।
मेरे मन में बहुत दुःख का कारण क्या है? जबकि मेरे अंदर ज्यादा कुछ पाने की लालसा नहीं है, जो मिला उसमें संतुष्टि है। फिर भी दुनियाँ की स्थिति देख के बहुत गहरे दुःख का अनुभव होता है।
उत्तर -
२ उत्तर हो सकते हैं, गहराई से समझने की कोशिश करना -
१. पहला इसे कर्म फल के सिद्धान्त पर छोड़ सकती हो, जैसे पुराने और पिछले जन्मों के कर्म। इसको थोड़ा और स्पष्ट समझने के लिए ऐसा समझो जैसे किसी ने 15 साल की उम्र में कोई गलत काम किया और सजा उसे 70 साल की उम्र में मिल रही है, जब वह एक अच्छा इन्सान बन चुका है।
जब तुम उसे 70 में देखोगे तो तुम्हें लगेगा गलत हो रहा है, इसे ही प्रारब्ध कर्म कहा जाता है।
२. दूसरा अन्वेषण करो, खोज करो आखिर दुःख है कहां ? ऐसा क्या है जो दुःख जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही है तुम्हारे सामने।
बाहरी सारी घटना तो एक साधन मात्र हैं वह दुःख नहीं हैं। जैसे कोई बस या ट्रेन से कोई गंतव्य तक जाता है, लेकिन बस या ट्रेन ही गंतव्य नहीं है।
इसको स्पष्ट समझने के लिए,
तुम्हें दुःख तभी होता है, जब तुम देखती हो या सुनती हो या कह लो इस तरह के विचार कर लेती हो।
लेकिन तुम्हें यह देखने, सुनने को न मिले तो दुनियां से दुःख ख़तम हुआ या तुम्हारा दुःख कम हो गया ? विचार करना। दुनियाँ में दिखने वाले दुःख में कई कारण हो सकते हैं, लेकिन तुम्हारे दुःख का एक मात्र कारण है मोह! ( Attachment )
अगर तुमने पहले उत्तर को चुना तो सब कर्म सिद्धान्त पर छोड़ दो। सब अपने कर्मों एवम प्रारब्ध का भोग कर रहे हैं। सही और गलत दोनों।
अगर तुमने दूसरे उत्तर को चुना तो तुम्हें खोज करने होंगे, उस खोज का ही नाम योग एवम ध्यान है।
ऊपर के दोनों सिद्धान्त गलत या अलग नहीं हैं, जब तक स्पष्ट रूप से समझ नहीं आ जाते तब तक अलग से प्रतीत होते रहते हैं और बिना अनुभव इनको एक समझा भी नहीं जा सकता है।
मैं लोगों की मदद करना चाहती हूं, लेकिन घर से बाहर नहीं जा सकती। क्या मैं आपके ग्रुप से जुड़ सकती हूं, ताकि लोगों की मदद कर सकूं ?
उत्तर -
यहां दो अलग प्रश्न है
पहला लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं अगर घर से बाहर नहीं निकल सकते ?
लोगों की मदद करने के लिए घर से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। जहाँ हो जिस हालत में वहाँ से मदद की जा सकती है। मदद करने के लिए सबसे आवश्यक है भावना और ईच्छाशक्ति।
इसको इस तरह से समझने की कोशिश करते हैं ...
एक होती है प्रत्यक्ष रूप से मदद, जो मोटे तौर पर सब लोगों को दिखती है। इस तरह की मदद अक्सर दिखावे के लिए भी की जाती है। हमेशा दिखावा ही है, ऐसा बिलकुल नहीं है। तो जब कोई मौका मिले तो किसी की मदद कर दिया। कभी किसी को पानी पिला देना, किसी को थोड़े पैसे से मदद कर देना, कोई सेवा दान कर देना इत्यादि.
दूसरे मदद का तरीका है, परोक्ष रूप से। इस तरह के मदद में मदद करने वाली की ख्याति की संभावना बहुत कम रहती है।
जैसे समाज के लिए कितने लोग या कितनी संस्थाएं आपसे बिना उम्मीद रखे काम करती रहती हैं, उनके बारे में हमें जानकारी भी नहीं होती है।
मैं निजी तौर पर परोक्ष रूप के मदद को ज्यादा उत्तम मानता हूं, यह आपके सेवा की गहरी भावना को दिखाता है। यहां अहंकार की स्थिति कम रहती है।
एक और बात यहां गौर कर लेने योग्य है कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं है, बस भावना बड़ी और गहरी रहनी चाहिए। हो सकता है एक ग्लास पानी की मदद से किसी इन्सान या किसी पशु-पक्षी की जान बच जाए।
अब समझते हैं, कुछ ऐसी चीजें जो घर से मदद की जा सकती है।
पशु पक्षी के लिए खाने पीने की व्यवस्था, अपनी आय के अनुसार लोगों की धन दान से मदद, घर अथवा पड़ोस के बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं संस्कार का दान आदि।
एक और बड़ी गहरी मदद की जा सकती है, अगर गहराई से समझ सको इसे। लोगों में मानसिक अशांति बहुत है। हमेशा से रही है लेकिन आज के भाग - दौड़ के समाज में ऐसी स्थिति और ज्यादा हो गई है। ऐसे में उनके सामने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश करो कि कैसे विपरीत स्थिति में शान्त रहा जा सकता है।
यह बहुत ही गहरी मदद होगी लोगों के लिए, इन्सान या जानवर किसी भी शान्त मनुष्य के साथ दो क्षण मिल कर भी शांति का अनुभव करते हैं।
अपने जीवन में भी अनुभव से देखा जा सकता है। जब हम बहुत परेशान होते हो तो चाहते हो कोई एक शान्त अनुभवी इन्सान मिले जिसके पास बैठ के शान्ति का अनुभव किया जा सके। शान्त वातावरण की खोज में लोग पहाड़ों में जाते हैं, नदी किनारे बैठते हैं, जंगलों में भटकते हैं, मंदिरों में जाते हैं। शान्त जानवर के साथ बैठकर अथवा खेलकूद कर भी शान्ति की स्थिति को पाने का प्रयास किया जाता है।
अगर ऐसी शान्त स्थिति अपने आस - पास बना सको तो इससे गहरी मदद नहीं हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले स्वयं को हर परस्थिति में शान्त बनाने का प्रयास करते रहना होगा।
अब दूसरे प्रश्न को लेते हैं, क्या मेरे ग्रुप से जुड़ सकते हैं ?
- हॉं! बिलकुल,
लेकिन यह समझ लेते हैं ध्यान कक्षा ( ग्रुप ) का उद्देश्य क्या है ?
महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण आदि हजारों लोगों ने शान्ति की स्थिति बनाने का प्रयास किया है। ध्यान कक्षा भी बस लोगों के बीच शान्ति के प्रसार के लिए एक और प्रयास है। यहां लोगों को योग एवम ध्यान आदि के बारे में मार्गदर्शन किया जाता है। इस संस्था का प्रचार मैंने कभी किया नहीं, जितने लोग जुड़ें हैं वे वही लोग हैं जो शान्ति के मार्ग पर चलना चाहते हैं, जो अपने आस पास एक गहरी शान्ति का वातावरण पैदा करना चाहते हैं।
जो भी लोग अपने आस-पास शान्ति की स्थिति बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, मैं उन सब जाने - अनजाने लोगों से आत्मीयता के स्तर पर जुड़ा हुआ हूं।
परम शान्ति की तलाश में ध्यान एक गहरा मार्ग है, ध्यान मार्ग का हर एक अभ्यर्थी ध्यान कक्षा का सदस्य है। इस संस्था के विचारों को लोगों तक पहुंचा कर भी लोगों की मदद की जा सकती है और संस्था के प्रति सेवा भाव प्रदर्शित किया जा सकता है।
उत्तर -
यहां दो अलग प्रश्न है
पहला लोगों की मदद कैसे कर सकते हैं अगर घर से बाहर नहीं निकल सकते ?
लोगों की मदद करने के लिए घर से बाहर जाने की कोई जरूरत नहीं पड़ेगी। जहाँ हो जिस हालत में वहाँ से मदद की जा सकती है। मदद करने के लिए सबसे आवश्यक है भावना और ईच्छाशक्ति।
इसको इस तरह से समझने की कोशिश करते हैं ...
एक होती है प्रत्यक्ष रूप से मदद, जो मोटे तौर पर सब लोगों को दिखती है। इस तरह की मदद अक्सर दिखावे के लिए भी की जाती है। हमेशा दिखावा ही है, ऐसा बिलकुल नहीं है। तो जब कोई मौका मिले तो किसी की मदद कर दिया। कभी किसी को पानी पिला देना, किसी को थोड़े पैसे से मदद कर देना, कोई सेवा दान कर देना इत्यादि.
दूसरे मदद का तरीका है, परोक्ष रूप से। इस तरह के मदद में मदद करने वाली की ख्याति की संभावना बहुत कम रहती है।
जैसे समाज के लिए कितने लोग या कितनी संस्थाएं आपसे बिना उम्मीद रखे काम करती रहती हैं, उनके बारे में हमें जानकारी भी नहीं होती है।
मैं निजी तौर पर परोक्ष रूप के मदद को ज्यादा उत्तम मानता हूं, यह आपके सेवा की गहरी भावना को दिखाता है। यहां अहंकार की स्थिति कम रहती है।
एक और बात यहां गौर कर लेने योग्य है कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं है, बस भावना बड़ी और गहरी रहनी चाहिए। हो सकता है एक ग्लास पानी की मदद से किसी इन्सान या किसी पशु-पक्षी की जान बच जाए।
अब समझते हैं, कुछ ऐसी चीजें जो घर से मदद की जा सकती है।
पशु पक्षी के लिए खाने पीने की व्यवस्था, अपनी आय के अनुसार लोगों की धन दान से मदद, घर अथवा पड़ोस के बच्चों को अच्छी शिक्षा एवं संस्कार का दान आदि।
एक और बड़ी गहरी मदद की जा सकती है, अगर गहराई से समझ सको इसे। लोगों में मानसिक अशांति बहुत है। हमेशा से रही है लेकिन आज के भाग - दौड़ के समाज में ऐसी स्थिति और ज्यादा हो गई है। ऐसे में उनके सामने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में पेश करो कि कैसे विपरीत स्थिति में शान्त रहा जा सकता है।
यह बहुत ही गहरी मदद होगी लोगों के लिए, इन्सान या जानवर किसी भी शान्त मनुष्य के साथ दो क्षण मिल कर भी शांति का अनुभव करते हैं।
अपने जीवन में भी अनुभव से देखा जा सकता है। जब हम बहुत परेशान होते हो तो चाहते हो कोई एक शान्त अनुभवी इन्सान मिले जिसके पास बैठ के शान्ति का अनुभव किया जा सके। शान्त वातावरण की खोज में लोग पहाड़ों में जाते हैं, नदी किनारे बैठते हैं, जंगलों में भटकते हैं, मंदिरों में जाते हैं। शान्त जानवर के साथ बैठकर अथवा खेलकूद कर भी शान्ति की स्थिति को पाने का प्रयास किया जाता है।
अगर ऐसी शान्त स्थिति अपने आस - पास बना सको तो इससे गहरी मदद नहीं हो सकती है। इसके लिए सबसे पहले स्वयं को हर परस्थिति में शान्त बनाने का प्रयास करते रहना होगा।
अब दूसरे प्रश्न को लेते हैं, क्या मेरे ग्रुप से जुड़ सकते हैं ?
- हॉं! बिलकुल,
लेकिन यह समझ लेते हैं ध्यान कक्षा ( ग्रुप ) का उद्देश्य क्या है ?
महात्मा बुद्ध, स्वामी विवेकानन्द, महर्षि रमण आदि हजारों लोगों ने शान्ति की स्थिति बनाने का प्रयास किया है। ध्यान कक्षा भी बस लोगों के बीच शान्ति के प्रसार के लिए एक और प्रयास है। यहां लोगों को योग एवम ध्यान आदि के बारे में मार्गदर्शन किया जाता है। इस संस्था का प्रचार मैंने कभी किया नहीं, जितने लोग जुड़ें हैं वे वही लोग हैं जो शान्ति के मार्ग पर चलना चाहते हैं, जो अपने आस पास एक गहरी शान्ति का वातावरण पैदा करना चाहते हैं।
जो भी लोग अपने आस-पास शान्ति की स्थिति बनाने के लिए प्रयास कर रहे हैं, मैं उन सब जाने - अनजाने लोगों से आत्मीयता के स्तर पर जुड़ा हुआ हूं।
परम शान्ति की तलाश में ध्यान एक गहरा मार्ग है, ध्यान मार्ग का हर एक अभ्यर्थी ध्यान कक्षा का सदस्य है। इस संस्था के विचारों को लोगों तक पहुंचा कर भी लोगों की मदद की जा सकती है और संस्था के प्रति सेवा भाव प्रदर्शित किया जा सकता है।
इस ग्रुप में रचनाएँ कौन सी भाषा में पढ़ना पसन्द करते हैं ?
Which language you prefer to read articles in the group?
Which language you prefer to read articles in the group?
Anonymous Poll
66%
हिन्दी
10%
English
23%
Both ( दोनों )
DhyanKaksha.Org pinned «इस ग्रुप में रचनाएँ कौन सी भाषा में पढ़ना पसन्द करते हैं ?
Which language you prefer to read articles in the group?»
Which language you prefer to read articles in the group?»
ध्यान एवं योगासन अभ्यास के लिए नीचे दिए लिंक से शामिल हो सकते हैं ...
ध्यान की कक्षा में 4:35 के बाद शामिल नहीं हो सकते हैं
ब्रह्ममुहूर्त ध्यान - सुबह 4:30 - 5:30
https://meet.google.com/out-qdch-fzc
योगासन अभ्यास - सुबह 6:00 - 7:00
https://meet.google.com/zvu-fprj-qcs
इस मैसेज को इच्छुक साधकों तक अवश्य पहुँचा दें ...
ध्यान की कक्षा में 4:35 के बाद शामिल नहीं हो सकते हैं
ब्रह्ममुहूर्त ध्यान - सुबह 4:30 - 5:30
https://meet.google.com/out-qdch-fzc
योगासन अभ्यास - सुबह 6:00 - 7:00
https://meet.google.com/zvu-fprj-qcs
इस मैसेज को इच्छुक साधकों तक अवश्य पहुँचा दें ...
Google
Real-time meetings by Google. Using your browser, share your video, desktop, and presentations with teammates and customers.
कुछ साधकों के अनुरोध पर,
आज ( 12 अप्रैल 2023), शाम 9 PM से 10 पीएम ) योग निद्रा की क्लास होगी।
जिसमें पहले 1/2 घंटा आध्यात्मिक शिक्षा अथवा आपके प्रश्नों का उत्तर शामिल होगा, बाकी का 1/2 घंटा योग निद्रा का अभ्यास करेंगे।
योग निद्रा का अभ्यास मानसिक तनाव, अनिद्रा आदि में बहुत लाभकारी है।
लिंक के प्रयोग से शामिल हो सकते हैं।
https://meet.google.com/hzj-uyon-xgk
किसी भी परिस्थिति में 9:30 PM के बाद कक्षा में शामिल नहीं किया जा सकेगा।
अन्य इच्छुक लोगों तक लिंक साझा कर सकते हैं।
आज ( 12 अप्रैल 2023), शाम 9 PM से 10 पीएम ) योग निद्रा की क्लास होगी।
जिसमें पहले 1/2 घंटा आध्यात्मिक शिक्षा अथवा आपके प्रश्नों का उत्तर शामिल होगा, बाकी का 1/2 घंटा योग निद्रा का अभ्यास करेंगे।
योग निद्रा का अभ्यास मानसिक तनाव, अनिद्रा आदि में बहुत लाभकारी है।
लिंक के प्रयोग से शामिल हो सकते हैं।
https://meet.google.com/hzj-uyon-xgk
किसी भी परिस्थिति में 9:30 PM के बाद कक्षा में शामिल नहीं किया जा सकेगा।
अन्य इच्छुक लोगों तक लिंक साझा कर सकते हैं।
Google
Real-time meetings by Google. Using your browser, share your video, desktop, and presentations with teammates and customers.
प्रश्न - मन में नकारात्मक सोच आते हैं क्या करूं?
उत्तर -
एक स्थिति से समझो इसे,
अचानक से तुम्हारे घर में कहीं से बदबू आ जाती है, तब तुम क्या करते हो?
क्या घर छोड़ कर चले जाते हो ?
उस बदबू से बचने के लिए ऐसा क्या करते हो?
क्या घर में एक सुगंध जैसा कुछ छिड़काव नहीं करते ?
सुगंध के छिड़काव करने से ही कुछ देर के लिए वातावरण ठीक हो जाता है और कुछ समय अंतराल के बाद वह बदबू और खुशबू दोनों चली जाती है।
ठीक उसी तरीके से जब तुम्हारे मन में कोई भी नकारात्मक सोच आती है तब तुम्हें कोई एक सकारात्मक सोच, एक सकारात्मक विचार अपने मन में लाना है।
और देखोगे धीरे-धीरे सकारात्मक विचार तुम्हारे मन के वातावरण को बदल कर रख देगा और कुछ अंतराल के बाद तुम स्वस्थ महसूस कर रहे होगे, स्वच्छ महसूस कर रहे होगे।
उत्तर -
एक स्थिति से समझो इसे,
अचानक से तुम्हारे घर में कहीं से बदबू आ जाती है, तब तुम क्या करते हो?
क्या घर छोड़ कर चले जाते हो ?
उस बदबू से बचने के लिए ऐसा क्या करते हो?
क्या घर में एक सुगंध जैसा कुछ छिड़काव नहीं करते ?
सुगंध के छिड़काव करने से ही कुछ देर के लिए वातावरण ठीक हो जाता है और कुछ समय अंतराल के बाद वह बदबू और खुशबू दोनों चली जाती है।
ठीक उसी तरीके से जब तुम्हारे मन में कोई भी नकारात्मक सोच आती है तब तुम्हें कोई एक सकारात्मक सोच, एक सकारात्मक विचार अपने मन में लाना है।
और देखोगे धीरे-धीरे सकारात्मक विचार तुम्हारे मन के वातावरण को बदल कर रख देगा और कुछ अंतराल के बाद तुम स्वस्थ महसूस कर रहे होगे, स्वच्छ महसूस कर रहे होगे।
किसी भी कारण से आप सुबह की ध्यान कक्षा में नहीं जुड़ पा रहे हैं। तो भी थोड़ा समय निकाल का सुबह-शाम का अभ्यास प्रतिदिन करना आवश्यक है।
क्या प्रतिदिन दोनों समय नियमित अभ्यास कर रहे हो ?
क्या प्रतिदिन दोनों समय नियमित अभ्यास कर रहे हो ?
Anonymous Poll
18%
जी, मैं दो समय नियमित अभ्यास कर रहा हूं
21%
एक ही समय अभ्यास कर पा रहा हूं
61%
एक भी समय अभ्यास नहीं कर पा रहा / नहीं करता हूं
दु:ख और दुविधा के परिस्थिति में इन्सानों के पास ढेर सारे प्रश्न आते हैं, कुछ दुःख में डूब जाते हैं कुछ प्रश्नों के हल ढूंढने लगते हैं।
कोई प्रश्न जो तुम्हें परेशान कर रहा हो? @dhyankaksha ( टेलीग्राम) पर पूछ सकते हो।
कोई प्रश्न जो तुम्हें परेशान कर रहा हो? @dhyankaksha ( टेलीग्राम) पर पूछ सकते हो।
एक बार चिमनी लाल एक दुकान में गए वहां से एक किलो चावल लेना चाहते हैं। दुकान वाला चावल पैकेट में डाल लिया लेकिन दे नहीं रहा है। कहता है पहले पैसे दो, चिमनी लाल कहते हैं पहले चावल दो।
अब उस स्थिति को और ढंग से देखो ...
१. दोनों एक दूसरे से सालों से ढंग से परिचित हैं,
२. दोनों में हमेशा मित्रवत व्यवहार है
३. दोनों ईमानदार हैं, यह बात दोनों को मालूम है
४. यह उनकी पहली बार की बहस नहीं है, हर बार यही होता है
५. तुम्हारे पास पैसे भी हैं लेकिन देना चावल लेने के बाद चाहते हो
हर बार चिमनी ही हार जाता है
अब आज तुम तय करो
1. दुकानदार को पहले चावल देना चाहिए
2. चिमनी को पहले पैसे देने चाहिए।
अब उस स्थिति को और ढंग से देखो ...
१. दोनों एक दूसरे से सालों से ढंग से परिचित हैं,
२. दोनों में हमेशा मित्रवत व्यवहार है
३. दोनों ईमानदार हैं, यह बात दोनों को मालूम है
४. यह उनकी पहली बार की बहस नहीं है, हर बार यही होता है
५. तुम्हारे पास पैसे भी हैं लेकिन देना चावल लेने के बाद चाहते हो
हर बार चिमनी ही हार जाता है
अब आज तुम तय करो
1. दुकानदार को पहले चावल देना चाहिए
2. चिमनी को पहले पैसे देने चाहिए।
ऊपर की कहानी में,
कुछ लोगों के मन में यह भी विचार आया होगा, जब चिमनी हमेशा इसी दुकान से सामान लेता है तो पहले चावल दे देने में भला दुकानदार का क्या जाता है। बड़ा ही अजीब सा रहा होगा यह दुकानदार।
बहुत लोगों के मन में विचार आया होगा, रोज ही बहस करता ही क्यों है यह चिमनी, जब पहले पैसे लेकर ही हमेशा समान देता है दुकानदार। पक्का ये चिमनी झक्की है, बेवकूफ है, पागल है या कम से कम बुद्धिमान तो नहीं कह सकते इसको।
तुम्हारे पड़ोस के दुकान में भले ही स्थिति बदल जाए, यहां स्थिति कभी नहीं बदलेगी। यहां चिमनी कोई और नहीं बल्कि तुम हो, दुकानदार कोई और नहीं प्रकृति है, ईश्वर है।
दुकानदार तुम्हारे सामान को पैक करके बैठा है, वह दे देना चाहता है। तुम्हारे पास क्षमता भी है यह भी दोनों को मालूम है। लेकिन तुम हमेशा की भांति आज फिर से बहस में उलझे हो। दुकानदार ( प्रकृति ) नियम नहीं तोड़ेगा कभी भी नहीं।
तुम्हें अगर जीवन में कुछ भी चाहिए तो अभ्यास और प्रयास करना ही पड़ेगा।
रोज रोज चिमनी की तरह बहस में पड़ने से बेहतर है, आदत बदल डालो। अभ्यास करो, कर्म करो परिणाम स्वत: आयेंगे।
कुछ लोगों के मन में यह भी विचार आया होगा, जब चिमनी हमेशा इसी दुकान से सामान लेता है तो पहले चावल दे देने में भला दुकानदार का क्या जाता है। बड़ा ही अजीब सा रहा होगा यह दुकानदार।
बहुत लोगों के मन में विचार आया होगा, रोज ही बहस करता ही क्यों है यह चिमनी, जब पहले पैसे लेकर ही हमेशा समान देता है दुकानदार। पक्का ये चिमनी झक्की है, बेवकूफ है, पागल है या कम से कम बुद्धिमान तो नहीं कह सकते इसको।
तुम्हारे पड़ोस के दुकान में भले ही स्थिति बदल जाए, यहां स्थिति कभी नहीं बदलेगी। यहां चिमनी कोई और नहीं बल्कि तुम हो, दुकानदार कोई और नहीं प्रकृति है, ईश्वर है।
दुकानदार तुम्हारे सामान को पैक करके बैठा है, वह दे देना चाहता है। तुम्हारे पास क्षमता भी है यह भी दोनों को मालूम है। लेकिन तुम हमेशा की भांति आज फिर से बहस में उलझे हो। दुकानदार ( प्रकृति ) नियम नहीं तोड़ेगा कभी भी नहीं।
तुम्हें अगर जीवन में कुछ भी चाहिए तो अभ्यास और प्रयास करना ही पड़ेगा।
रोज रोज चिमनी की तरह बहस में पड़ने से बेहतर है, आदत बदल डालो। अभ्यास करो, कर्म करो परिणाम स्वत: आयेंगे।