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सुनो तो

ना हिम्मत ना हौसला
ना कोशिश करता है

वो अपनी गलतियों को
छुपने के लिए बहाने हजार
करता है

Irfan...✍️
सुनो ना

गलतियां जब वो अपनी छुपने लगे

हौसले पस्त उसके बहाने बनाने लगे

Irfan...✍️
सुनो

जो अपनी गलतियों को सुधारने
की कोशिश करता था
वो इंसान ना जाने कहा खो गया

अब वो अपनी गलतियों को छुपाने
की कोशिश करता है
वो इंसान का जमीर सो गया

देता है हर बात में वो तर्क ना जाने
उसको क्या हो गया
ज़ख्म दे गया गहरे मुझे अहमियत
मेरी वो खो गया

इरफान
Sᴜɴᴏ

एक दिन हमने भी बदल
दिया किरदार अपना

वफा करके भी होता है
बेवफा यार अपना

उसकी बेवफाई को वफा
मैं तब्दील करके

हमने ही रख दिया बेवफाओं
मैं ऊंचा नाम अपना

irfan...✍️
sᴜɴᴏ

ज़माने के मुताबिक अगर
मैं ढल जाता

आहिस्ता आहिस्ता ही सही
मैं बदल जाता

irfan...✍️
सुनो

तुमने क्या अब वो मैं तुम्हे
करके दिखाता हूं

मेने कितना समझाया अब ऐसे
तुम्हे समझता हूं

Irfan...✍️
Sᴜɴᴏ

कैद कर सके मुझे ऐसी
कोई बंदिश नहीं

बस तेरी बाहों के सिवा
किसी मैं ऐसी बात नहीं

irfan...✍️
sᴜɴᴏ

तकदीर को कुछ इस्तरह
अपनाया है मैने

नही था तकदीर मैं जो उसे
बेपनाह चाहा है मैने

irfan...✍️
सुनो

हम भी एक सौदा ऐसा ही कर
जायेंगे

दिल दे कर तुम्हे तोहफे मैं हम
हार जायेंगे

Irfan...✍️
Suno

गर्दिश मैं रहा इश्क का सितारा मेरे
मैं समंदर मैं डूबता रहा इंतजार में तेरे

लिख देता कोई गीत या गजल नाम तेरे,कुछ और सोचा ही नहीं सिवाय नाम के तेरे

सिर्फ तू ही तू रहा ख्वाबों ख्यालों में मेरे,भुला बैठा हु ज़माना साकी ए उल्फत मैं तेरे

तुझे रुसवा ना करूंगा ज़माने मैं कभी,चाहे झूठी कसमें खा कर भर लू पेट मेरे

तेरे लबों का जाम पी कर झूम भी जाऊं,अंधेरे हाथो मैं लिए ढूंढू,रोशन चिराग नाम के तेरे

Irfan...✍️
Suno

बगैर तेरे एक पल भी गुजारा नही होता
हमारा होकर भी तू हमारा नही होता

नींद हमारी और ख्वाब सिर्फ तुम्हारे
पाबंद है आंखे कोई और नजारा नही
होता

ज़मीं पर चमके जुगनू आसमां पे सितारा
एक नूरानी सितारा मगर तुझसा नही होता

दाग है मेहताब मैं आसमानों पे चमकना
ये मेहताब जमीन का बस हमारा नही होता

गहराई मैं डूब चुके है तेरी यादों मैं सनम
काश ये सिसकता दिल तुझ पे हारा नही होता

समंदर भी मोजे मारता रहा जुनून ए इश्क
में, अक्सर ऐसे तूफानों का किनारा नही होता

Irfan...✍️
फिर क्या कहूं के, कुछ हुआ ही नहीं
हुआ क्या है, ये तो, कुछ पता भी नही

मिला इतना के, उम्र भर सोचते हम,
और ऐसा कैसे के, कुछ मिला ही नहीं

फिर उसे देखते, उम्र भर, सोचते हम,
और एक दिल को, कुछ गिला भी नही

आवाज निकली जो, देखकर दिल से,
बगल से निकला तो कुछ कहा भी नही

कशिश दिल की पुकारूं तुम्हे अपना कहकर,
बगल से होकर के भी सोचू कुछ सुना तो नही

तुम्हे देखकर तुम्हारी राह ही रुक गया मैं,
वो आके जो गया वो कभी दिखा ही नहीं

बढ़कर आगे क्या देखता मैं रुका ऐसे कि,
एक नजर उसको जो देखा तो बढ़ा ही नही

फिर जो आया करीब लबों के तो ये लगा,
करीब आकर भी क्यों इन्हे छुआ ही नही,

गुजर गए वो पल तो याद आया हमें के,
जो था कभी मेरा, वो मेरा हुआ ही नही

लिखता वो जो रात तो क्या सोचती तुम,
लिखता जो वो पल के फिर गया ही नहीं

लिखता तुम्हें सांसों को जो उठी थी देखकर,
लिखता मगर सांसों में वो अब मजा भी नहीं

चला गया रास्ते से फिर नही कहा कुछ तो,
और ये हुआ के जैसे के कुछ हुआ भी नही


सत्यम तिवारी❤️👍
Suno

तेरी नाराजगी भी मेरे लिए जायज है
तुझे महफूज रखना मेरी ख्वाइश है

तेरे अपनो के दर्मियां हो रही साजिश है
इम्तेहान सख्त है ये तेरी आजमाइश है

हर पल हु मै साथ तेरे तन्हा ना समझना
तेरे बढ़ते कदम और जुल्म ओ सितम
की पेमाइश है

खौफ इस बात का है ओ मेरे हमनवा
कैद हो कर ना रह जाए तू दिखावे की
नुमाइश है

Irfan...✍️
Suno

रहता जमीन पर और अफसोस
आफताब से प्यार कर बैठा हूं

छाए थे सारी तरफ अंधियारे
मैं उम्मीदों का चिराग लिए बैठा हूं

बहुत फासला है हमारे दर्मियाँ
और मेरी जिद्द है में तेरा इंतजार किए बैठा हूं

Irfan...✍️
ये बहाव भी जरूरी है,ये ठहराव भी जरूरी है
जरूरी नहीं ये धूप हो,कुछ छाव भी जरूरी है

जरूरी नहीं,मरहम मिले,जब ज्ञात हो पीड़ा मन की
सिखा दे "जिंदगी" जीना,ऐसा घाव भी जरूरी है

फैसले तो बहुत लेने है जिंदगी में कई सारे लेकिन,
यार मेरे घर में,इन बड़ों का,सुझाव भी जरूरी है

लोग इस कदर निकले के,अब है वो आंगन सुना
कौन समझाए नादानों को, ये गांव भी जरूरी है

तुम्हारे कहने से क्या होता, तिवारी तुम शायर हो,
फिर उसका ये कहना अब "लौट आओ" भी जरूरी है

कोयल तो मीठी सुर में दिखाती है सुख सपनों का,
जीवन में दुख के कौंवे का कांव कांव भी जरूरी है

कौन देखता है इतना फिर पैसा शोहरत गाड़ी,
इसके साथ साथ अच्छा स्वभाव भी जरूरी है

सत्यम तिवारी♥️✍️
एक स्वप्न ~ "मां का गुजरना"💔

रात हुई, फिर सपनों की,
बरसात दिखाई देती हैं
मैं जब भी अकेले रहता हूं
मां साथ दिखाई देती है
मां तुम कितनी निर्मल हो,
मां तुम कितनी शीतल हो
मां तुम सा कोई नही यहां
मां तुम जैसे गंगा जल हो
मां तुम्हारी परिभाषा,
कोई भी नहीं,कह सकता है
मां तुम सबसे❤️सुंदर हो,
तुम बिन कोई,नहीं रह सकता है
मां तुम्हारी छाया में मैं,
बचपन पूरा खेला हूं
मां आज बड़ी जरूरत है,
मैं एकदम से अकेला हूं
मां,आई,अम्मा,अम्मी,
इनसे तुम्हे जाना जाता है
मां ईश्वर से भी बढ़ कर,
तुमको माना जाता है
मां तुमने कितनी ही नाजों से,
हम बच्चों को पाला हैं
मां खुद की चिंता न करके
तुमने हमे संभाला है
मां लाल तुम्हारा हैं तुमको,
फिर से है पुकारता
मां उठो भी न तुम शैय्या से,
तुम्हारा लाल तुम्हे निहारता
मुझे तुम बतलाओ ताऊ जी,
मां क्यों नही है बोलती
क्या हुआ उन्हे कुछ तो बोलो,
मां आंखे क्यों नही खोलती
घर का हूं सबसे छोटा मैं,
मां तुमने नाजों से पाला है
मां देखो तुम्हारा लाल आज,
लेखक बनने वाला है
मां मेरी बात मान लो भी,
एक बार मुझे तुम देखो भी
मां लाल तुम्हारा रोए रहा,
मां आंसू मेरे तुम पोछों भी
मां भी बेचारी आज उसको,
क्या ही कुछ बोलेगी..!
मां जा चुकी है उठो बेटा,
मां आंखे कैसे खोलेगी...!
मुझको अलग हटा करके,
मां को ले जाया जाता है
फिर बड़े भाई के हाथो से,
उन्हे अग्नि दिलाया जाता है
तू छोटा था,समझता नही
लेकिन तू तो मां का प्यारा है
मां चली गई ना आयेगी,
अब तू पापा का सहारा है
कल सपनो में आकर फिर,
मां ही सब याद दिलाती है
स्मृति पटल पर इक वही छाप,
फिर दुबारा आ जाती है
मां तुम बिन,मेरा कुछ भी,
नही यहां आधार कोई...
मां तुम बिन कैसे खुश रहूं,
तुम बिन मेरा परिवार नही..!✍️

मां तुम बिन मेरा परिवार नही..!

सत्यम तिवारी✍️❣️
हैदरगढ़,बाराबंकी
उत्तर प्रदेश,लखनऊ
सुनो तो

तेरे इश्क मैं हम संवरने लगे
आसमानों में हम उड़ने लगे

तेरी खुमारी में हम बहकने लगे
मोम की तरह हम पिघलने लगे

मोहब्बत के दिए जब जलने लगे
दर्द के प्याले भी हम निगलने लगे

तुम नहीं तो कोई ग़म नहीं जाने जाना
हम परछाइयों से गले लगने लगे

इंतजार मैं तेरे हम तड़पने लगे
यादों में तुम्हारी हम मरने लगे

इरफान...✍️
*ये जिंदगी*

के कैसे कहूं, जिंदगी, ये कहा जा रही है
मैं जिधर, घूमता हूं, बस वहां जा रही है

फिर लोग पूछते,तू पहले जैसा क्यों नहीं,
यार पहले जैसी,मजा भी नहीं आ रही है

झरोखों के भरोसे है पत्ते,के उड़े कब,
और ये इक जिंदगी भी थकी जा रही है

मैं चाहूं भी जो अब तेरी ओर चलना,
अब घसीटे मुझे, ये बस वहीं ला रही है

कोई पूछता है , कि कैसी कट रही है
अब ये बातें भी बताई नहीं जा रही है

कहा तक चला गया, मैं, खुद को खोकर,
ये खुदको भी, समझ ,तो नहीं आ रही है

ये इश्क दोस्ती दुनियादारी, मै क्या करता
फिर अब ये सब भी,संभाले नहीं जा रही है

फिर किस से वो कहता एक आदमी यहां,
जिसके घर ये  जिम्मेदारी बड़ी जा रही है

तकलीफ बयां करते नहीं बनता दोस्त अब
ये जो लिखता हूं बस उसमें कही जा रही है

इस कदर हूं मरता चला जा रहा अन्दर से,
अब ये सांसे भी कुछ कुछ दबी जा रही है

के कैसे कहूं  ये जिदंगी कहा जा रही है
मैं जिधर घूमता हूं बस वहीं जा रही है

✍️सत्यम तिवारी✍️
कलम से क्रांति ✍️
हैदरगढ़ बाराबंकी 🙏❤️
उत्तर प्रदेश🙏✍️
2024/11/22 23:02:46
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