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💹 गोगाजी 💹

☑️गोगाजी का जन्म ग्यारहवीं शताब्दी में चुरू जिले के ददरेवा नामक स्थान पर हुआ था।

🔘गोगाजी के पिता का नाम पैवटसिंह और माता का नाम बाछलदे था।

🔘गोगाजी का जन्म एक चौहान वंश में हुआ था और गोगाजी के पिता ददरेवा के शासक थे।

🔘गोगाजी की पत्नी का नाम मेनल था जिनका नाम कहीं कहीं केमलदे भी मिलता है।

🔘गोगाजी के जन्म की जानकारी ‘गोगाजी पीर रा छंद’, ‘गोगापेडी’ व ‘गोगागी चहुँचाण री निसाणी’ नामक ग्रन्थों में मिलती है।

🔘गोगाजी को सांपों के देवता, गोगापीर, जाहरवीर, नागराज आदि उपनामों से भी जाना जाता है।

🔘गोगाजी ने अपने मौसेरे भाँईयों अर्जन-सर्जन से गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे।

🔘गोगाजी की मृत्यु के बाद इनकी पत्नी मेनल सती हुई थी।
🔘गोगा जी को सांपों का जहर नहीं चढ़ता था इसलिये कविराज सूर्यमल्ल मित्रण ने इन्हें ‘जाहिरपीर’ कहा है।

🔘किसान अपने हल पर गोगाजी के नाम की राखी नौ गाँठें देकर बांधते हैं जिसे गोगाराखड़ी कहते हैं।

🔘गोगाजी के दो मुख्य पूज्य स्थल हैं – ददरेवा (चुरू) एवं गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) है।

🔘ददरेवा को शीर्षमेड़ी कहते हैं क्योंकि यहाँ युद्ध करते समय गोगाजी का सिर गिरा था। यहाँ भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला लगता है।

🔘गोगामेड़ी / घुरमेडी में गोगाजी का धड़ गिरा था, इसी स्थान पर गोगाजी की समाधि स्थित है।

🔘 गोगामेडी में समाधि स्थल का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था तथा वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने दिया था।

🔘गेगामेड़ी में भी प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला लगता है। यहाँ के मंदिर में चायल जाति के मुसलमान पूजा करते हैं।

🔘गोगाजी का साहित्य :- गोगाजी रा रसावला – इसमें मुसलमानों से लड़ते हुए गोगाजी की वीरता का वर्णन किया है ।

🔘गोगाजी की पूजा ‘अश्वरोही योद्धा’ के रूप में व सर्प के रूप में की जाती है ।

🔘गोगाजी का पूजा स्थल ‘खेजड़ी’ के वृक्ष के नीचे होता है जिसमें पत्थर पर साँप की मूर्ति खुदी हुई है।

🔘गोगामेड़ी में स्थित मंदिर के दरवाजे पर – ‘बिस्मिल्लाह’ लिखा हुआ है।

🔘गोगाजी को हिन्दू नागराज का अवतार मानकर व मुस्लिम गोगाजी समझकर पूजते हैं।

🔘गोगाजी की याद में भाद्रपद कृष्ण नवभी को गोगामेडी में विशाल मेला भरता है। इस दिन को लोग गोगानवमी के नाम से पूजते हैं।
🔘गोजाजी की सवारी :- नीली घोड़ी है जिसे गोगा बाप्पा कहा जाता है।

🔘गोगाजी को इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने ‘फिरोजशाह तुगलक’ तथा दशरथ शर्मा ने ‘महमूद गजनवी’ के समकालीन माना है।

🔘गोगाजी का शेखावाटी में किया जाने वाला गोगानृत्य आज की काफी प्रसिद्ध है ।
🔘गोगामेड़ी में गोरखनाथ समाधि स्थल व गोरख तालाब है।

🔘किलोरियो की ढाणी, सांचौर(जालौर) में स्थित गोगाजी का एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसे ‘गोगाजी की ओल्डी’ कहा जाता है।




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🔘गोगाजी का जन्म एक चौहान वंश में हुआ था और गोगाजी के पिता ददरेवा के शासक थे।

🔘गोगाजी की पत्नी का नाम मेनल था जिनका नाम कहीं कहीं केमलदे भी मिलता है।

🔘गोगाजी के जन्म की जानकारी ‘गोगाजी पीर रा छंद’, ‘गोगापेडी’ व ‘गोगागी चहुँचाण री निसाणी’ नामक ग्रन्थों में मिलती है।

🔘गोगाजी को सांपों के देवता, गोगापीर, जाहरवीर, नागराज आदि उपनामों से भी जाना जाता है।

🔘गोगाजी ने अपने मौसेरे भाँईयों अर्जन-सर्जन से गायों की रक्षा करते हुए अपने प्राण त्याग दिये थे।

🔘गोगाजी की मृत्यु के बाद इनकी पत्नी मेनल सती हुई थी।
🔘गोगा जी को सांपों का जहर नहीं चढ़ता था इसलिये कविराज सूर्यमल्ल मित्रण ने इन्हें ‘जाहिरपीर’ कहा है।

🔘किसान अपने हल पर गोगाजी के नाम की राखी नौ गाँठें देकर बांधते हैं जिसे गोगाराखड़ी कहते हैं।

🔘गोगाजी के दो मुख्य पूज्य स्थल हैं – ददरेवा (चुरू) एवं गोगामेड़ी (हनुमानगढ़) है।

🔘ददरेवा को शीर्षमेड़ी कहते हैं क्योंकि यहाँ युद्ध करते समय गोगाजी का सिर गिरा था। यहाँ भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला लगता है।

🔘गोगामेड़ी / घुरमेडी में गोगाजी का धड़ गिरा था, इसी स्थान पर गोगाजी की समाधि स्थित है।

🔘 गोगामेडी में समाधि स्थल का निर्माण फिरोजशाह तुगलक ने करवाया था तथा वर्तमान स्वरूप बीकानेर के महाराजा गंगासिंह ने दिया था।

🔘गेगामेड़ी में भी प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी को मेला लगता है। यहाँ के मंदिर में चायल जाति के मुसलमान पूजा करते हैं।

🔘गोगाजी का साहित्य :- गोगाजी रा रसावला – इसमें मुसलमानों से लड़ते हुए गोगाजी की वीरता का वर्णन किया है ।

🔘गोगाजी की पूजा ‘अश्वरोही योद्धा’ के रूप में व सर्प के रूप में की जाती है ।

🔘गोगाजी का पूजा स्थल ‘खेजड़ी’ के वृक्ष के नीचे होता है जिसमें पत्थर पर साँप की मूर्ति खुदी हुई है।

🔘गोगामेड़ी में स्थित मंदिर के दरवाजे पर – ‘बिस्मिल्लाह’ लिखा हुआ है।

🔘गोगाजी को हिन्दू नागराज का अवतार मानकर व मुस्लिम गोगाजी समझकर पूजते हैं।

🔘गोगाजी की याद में भाद्रपद कृष्ण नवभी को गोगामेडी में विशाल मेला भरता है। इस दिन को लोग गोगानवमी के नाम से पूजते हैं।
🔘गोजाजी की सवारी :- नीली घोड़ी है जिसे गोगा बाप्पा कहा जाता है।

🔘गोगाजी को इतिहासकार कर्नल जेम्स टॉड ने ‘फिरोजशाह तुगलक’ तथा दशरथ शर्मा ने ‘महमूद गजनवी’ के समकालीन माना है।

🔘गोगाजी का शेखावाटी में किया जाने वाला गोगानृत्य आज की काफी प्रसिद्ध है ।
🔘गोगामेड़ी में गोरखनाथ समाधि स्थल व गोरख तालाब है।

🔘किलोरियो की ढाणी, सांचौर(जालौर) में स्थित गोगाजी का एक प्रसिद्ध मंदिर है जिसे ‘गोगाजी की ओल्डी’ कहा जाता है।




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