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ग़ज़ल मुलाहिज़ा फ़रमाएं :-
ग़म के मारों ख़ुशी से डरते हो।
ज़िन्दा हो ज़िन्दगी से डरते हो।।
बातें बढ-चढ के बोलने वालो।
क्यूं मेरी ख़ामोशी से डरते हो।।
ज़ुलमतों का असर ये है कि तुम।
सुबह की रोशनी से डरते हो।।
परवरिश का यही नतीजा है।
जिसको पाला उसी से डरते हो।।
है ये इन्सान शहर में अनजान।
आप क्यूं अजनबी से डरते हो।।
तुमको ख़ौफ़े-ख़ुदा नहीं शायद।
इसलिए हर किसी से डरते हो।।
बदला लेना इसे नहीं आता।
बे-वजह तुम "वली" से डरते हो।।
वली मुहम्मद ग़ौरी रज़वी "वली"
BY राहत की यादें ✍️❣️
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