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{{कटती रातें...}}
करवटें बदल बदल के परेशान होता हूँ
यादों से तो कभी आने वाले कल पे रोता हूँ
पता नहीं क्यों ? यह रात हमदर्द बनती हैं मेरे
जो दिल मे हैं सच और झूठ जानती हैं मेरे
रात भर जग के भी मेरे उलझने सुलझती नहीं
और यह आदत मेरे जो कभी बदलती नहीं
सोने वाले को आराम तो , रोने वाले को सहारा देता हैं
तकिया भी कमाल का होता हैं
वही यादें वही ज़ख्म वही सवाल और कुछ जवाब जो कभी नहीं मिलते
मैं हर रात उनपर फ़ैसला लेता हूँ
मैं हर ज़ख्म पे मरहम लगाता हूँ पर वो ज़ख्म कभी नहीं सिलते
किससे कहूँ और किससे पूछूं आईना तो बस मुस्कराता हैं
और यह कैसा मुस्कुराना जो मुझे रुलाता हैं
थक हार के नींद के इन्तज़ार में सुबह की आहट हों जाती हैं और जगती रात आखिर ख़तम हों जाती हैं...
✍🏻~अज्ञात
@sayarilover
BY शायराना!🤗
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