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*पानी, चाँद, और इंतज़ार...*
तीन शब्द जो आज दिन भर भारत के कई घरों में गूंज रहे होंगे। अभी तो और गूंजना चालू होंगे। बन्टी, जब अपने कमरे में बैठा-बैठा रील देख रहा होगा, उसकी अम्मा चिल्लाकर कहेंगी, "जा तो! छत पर जाकर देख, कहीं चाँद तो नहीं आया।" बन्टी के पापा कहीं चुपके-चुपके आलू भुजिया खा रहे होंगे। अम्मा के साथ-साथ उन्हें भी भूखा रहना पढ़ता है। एक दो मूठी खाने के बाद चेहरा साफ करके वापस कमरे से बाहर आजाएंगे।
ये तीनों शब्द, एक चौथे शब्द की तरफ इशारा कर रहे होते हैं - "त्याग"। हिन्दू धर्म में त्याग की महत्ता उतनी है जितनी जीवन में साँस की है। महिलायें आज के दिन जल और अन्न त्यागकर अपने पति के लिए दीर्घ आयु का वरदान मांगती हैं। हम सब के घर पर ये दृश्य आज ये हो रहा होगा। पर शायद ही हमने ये सोचा होगा कि हम भी तो एक करवा चौथ रखे हुए हैं।
*सपनों का करवा चौथ!* कई सालों से एक सपना जिसने हमारा खाना-पानी छुड़वा रखा है। जिसके लिए नींद त्यागने को हम मजबूर हैं। कई बच्चे अपने घर से दूर कहीं सकरे से कमरे में पढ़ रहे होंगे। जब दुनिया त्योहारों के गूंज में खिलखिलाती है, तब वो बच्चे किताबों के पन्ने पलट रहे होते हैं। ये दौड़, ये प्रयत्न, ये मेहनत किसी व्रत से कम नहीं है। पर, ये कुछ दिन और चलता रहेगा। बस कुछ ही दिन और। दिसम्बर आ रहा है। पढ़ाई होती रहनी चाहिए। बाकी, ध्यान रखिएगा अगर कोई आपका खास मित्र आपके लिए व्रत रखा हो तो उसका ठीक समय में व्रत खुलवा देना। मैं भी चलता हूँ। मुझे भी चोरी छिपके आलू भूझीया खानी है।
BY Army exam by exampur
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