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प्रश्न -

क्या मुक्ति की कामना होना भी एक कामना नहीं है ?
अगर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे बड़े पदभार छोड़ कर हिमालय पे जाने की इच्छा रखे तो क्या सही रास्ता है ?

-
सिद्धार्थ गौतम को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई, बुद्ध हो गये तो अपने वादा के अनुसार अपनी पत्नी यशोधरा के पास लौटकर आये।
तब यशोधरा ने पूछा - आपने जो कुछ पाया, आप तथागत हुए, बुद्ध हुए - क्या यह सब कुछ यहाँ नहीं मिल सकता था?
बुद्ध ने कहा - मिल तो यहाँ भी सकता था, लेकिन यहाँ भी मिल सकता है जानने के लिए मुझे जाना पड़ा, जिसके बिना यह जान पाना संभव नहीं था।

अब यहीं से अपने उत्तर को समझो, अगर मैं कह दूँ कि कोई अपने बड़े उत्तरदायित्व को छोड़कर चला जाये, यह उचित है; तो तुम्हारा प्रश्न यह होगा फिर राष्ट्र का क्या होगा?, समाज का क्या होगा? फिर तुम्हारे मन में बुद्ध के घर छोड़ जाने पर भी प्रश्न होने लगेगा।

पहली बात, दुनियाँ में किसी के कहीं जाने और रुक जाने से दुनियाँ नहीं चलती, समाज, देश, राष्ट्र आदि बनाई गई संस्था मानव निर्मित है जो हर १०-२० साल में बदलती ही रहती है। यह बहुत बड़े ब्रह्मांड में होने वाली एक छोटी सी घटना है। लेकिन कोई बुद्ध हो जाता है तो यह एक बड़ी घटना है।

समाज, कर्तव्य आदि को छोड़कर जाये बिना भी उस स्थिति तक पहुँचा जा सकता है और कौन कहाँ जा सकेगा, कहाँ जायेगा क, या होगा? यह सब बहुत कुछ प्रकृति या कहो ईश्वर तय करता है या कहो तुम्हारे हमारे पिछले कर्मों पर भी निर्भर करता है। पिछले कहने का मतलब सिर्फ़ पिछले जन्म ही नहीं, पिछले दिन, वर्ष, दशक, शतक हर कार्य का असर दिखता है।

इसलिए बुद्ध बनने की चेष्टा सबकी होती है लेकिन उस तरह की यात्रा पर कम ही लोग करते हैं और जब प्रारब्ध से यात्रा करते हैं तो प्रकृति सारी व्यवस्था कर देती है।

अब प्रश्न है, मुक्ति की कामना भी क्या कामना है?

हर एक कामना को बंधन जानो और मुक्ति की कामना भी एक बंधन ही है। जैसे एक जानवर को रस्सी में बाँधो, लोहे की ज़ंजीर में या सोने की ज़ंजीर में बंधन ही रहेगा। मुक्ति का अर्थ है हर विषय वस्तु के बंधन से मुक्त। लेकिन शुरुआत में मुक्ति की कामना मुक्ति की ओर जाने में मदद करती है।

उदाहरण के लिए मान लो तुम्हें नदी के दूसरे किनारे पर जाना है,
सबसे पहले इस किनारे को छोड़ना होगा
फिर एक नाव की ज़रूरत होगी
फिर दूसरे किनारे नाव पहुँचने पर नाव को भी छोड़ना ही पड़ेगा।
नहीं तो नाव के बंधन में बंधे रहोगे।

यही नाव मुक्ति की कामना है



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क्या मुक्ति की कामना होना भी एक कामना नहीं है ?
अगर कोई राष्ट्रीय सुरक्षा जैसे बड़े पदभार छोड़ कर हिमालय पे जाने की इच्छा रखे तो क्या सही रास्ता है ?

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सिद्धार्थ गौतम को जब ज्ञान की प्राप्ति हुई, बुद्ध हो गये तो अपने वादा के अनुसार अपनी पत्नी यशोधरा के पास लौटकर आये।
तब यशोधरा ने पूछा - आपने जो कुछ पाया, आप तथागत हुए, बुद्ध हुए - क्या यह सब कुछ यहाँ नहीं मिल सकता था?
बुद्ध ने कहा - मिल तो यहाँ भी सकता था, लेकिन यहाँ भी मिल सकता है जानने के लिए मुझे जाना पड़ा, जिसके बिना यह जान पाना संभव नहीं था।

अब यहीं से अपने उत्तर को समझो, अगर मैं कह दूँ कि कोई अपने बड़े उत्तरदायित्व को छोड़कर चला जाये, यह उचित है; तो तुम्हारा प्रश्न यह होगा फिर राष्ट्र का क्या होगा?, समाज का क्या होगा? फिर तुम्हारे मन में बुद्ध के घर छोड़ जाने पर भी प्रश्न होने लगेगा।

पहली बात, दुनियाँ में किसी के कहीं जाने और रुक जाने से दुनियाँ नहीं चलती, समाज, देश, राष्ट्र आदि बनाई गई संस्था मानव निर्मित है जो हर १०-२० साल में बदलती ही रहती है। यह बहुत बड़े ब्रह्मांड में होने वाली एक छोटी सी घटना है। लेकिन कोई बुद्ध हो जाता है तो यह एक बड़ी घटना है।

समाज, कर्तव्य आदि को छोड़कर जाये बिना भी उस स्थिति तक पहुँचा जा सकता है और कौन कहाँ जा सकेगा, कहाँ जायेगा क, या होगा? यह सब बहुत कुछ प्रकृति या कहो ईश्वर तय करता है या कहो तुम्हारे हमारे पिछले कर्मों पर भी निर्भर करता है। पिछले कहने का मतलब सिर्फ़ पिछले जन्म ही नहीं, पिछले दिन, वर्ष, दशक, शतक हर कार्य का असर दिखता है।

इसलिए बुद्ध बनने की चेष्टा सबकी होती है लेकिन उस तरह की यात्रा पर कम ही लोग करते हैं और जब प्रारब्ध से यात्रा करते हैं तो प्रकृति सारी व्यवस्था कर देती है।

अब प्रश्न है, मुक्ति की कामना भी क्या कामना है?

हर एक कामना को बंधन जानो और मुक्ति की कामना भी एक बंधन ही है। जैसे एक जानवर को रस्सी में बाँधो, लोहे की ज़ंजीर में या सोने की ज़ंजीर में बंधन ही रहेगा। मुक्ति का अर्थ है हर विषय वस्तु के बंधन से मुक्त। लेकिन शुरुआत में मुक्ति की कामना मुक्ति की ओर जाने में मदद करती है।

उदाहरण के लिए मान लो तुम्हें नदी के दूसरे किनारे पर जाना है,
सबसे पहले इस किनारे को छोड़ना होगा
फिर एक नाव की ज़रूरत होगी
फिर दूसरे किनारे नाव पहुँचने पर नाव को भी छोड़ना ही पड़ेगा।
नहीं तो नाव के बंधन में बंधे रहोगे।

यही नाव मुक्ति की कामना है

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