DHYANKAKSHAORG Telegram 488
अगले जन्म में आत्मा वही रहती है या बदल जाती है और कर्मों का हिसाब हमारे मरने के बाद या पहले? अगर सब कुछ कर्मों का फल है फिर तो कुछ ग़लत सही नहीं होता है।
-
इसको इस तरह से समझो,
एक सुनार के पास एक सोने की ईंट है, उसमें से उसने कुछ सोना निकाला और एक कंगन बनाया, कुछ सोने से गले की हार बनाया, कुछ सोने से अंगूठी बनाई।

अब तीनों गहने अलग अलग इन्सान को बेच दिए गए, फिर क्या हुआ होगा। तीनों गहनों की अलग अलग यात्रा शुरू हुई होगी। हो सकता है गले की हार को बाद में अलग आभूषण में बदले गए हों। किसी और को बेचा गया हो।

बार बार अलग आकार मिला होगा, नए मालिक मिले होंगे। कोई आभूषण किसी के पास ज्यादा दिन रहे होंगे कोई जल्दी-जल्दी बदले गए होंगे। अंगूठी हाथ में होने के कारण जल्दी घिस जाती होगी तो अपेक्षाकृत जल्दी आकार और मलिक बदल जाते होंगे, हार कभी-कभी पहना जाता होगा तो लंबे समय तक एक ही आकार में रहता होगा। है न ?

तो समझने वाली बात यह है क्या सोना बदल रहा है ? क्या सोने के गुण में कोई परिवर्तन आ रहा है ? नहीं सिर्फ आकार बदल रहा है, मालिक अर्थात स्थिति बदल रही है।

अब यहाँ गौर से देखो, सारा सोना एक ही है। जो सोनार के ईंट में बचा हुआ है या आभूषणों में घूम रहा है बाज़ार में। इन्हें कहने की सुविधा के लिए - बड़ा सोना और छोटा सोना नाम भर दिया जा सकता है।

उसी तरह परमात्मा से एक अंश निकला और किसी आकार में स्थापित हुआ और फिर उसकी यात्रा शुरू हो गई। जो अंश बाहर निकला और बार-बार बदलता हुआ संसार में घूम रहा है उसे आत्मा कह लिया सुविधा के लिए और जहां से निकला उसे परमात्मा।

तो तुम समझ रहे होगे, आत्मा बदलती नहीं है बस उसको नये नये आकार के आवरण में जाना पड़ता है।

और कर्मों का हिसाब हर वक़्त होते रहता है कुछ हिसाब बहुत छोटे होते हैं तो हमें पता नहीं चलता है। मृत्यु के बाद बड़ा परिवर्तन होता है वहाँ स्थूल शरीर भी टूट जाते हैं, बदल जाते हैं इसलिए वह परिवर्तन स्पष्ट दिखता है।
तुमने सुना होगा लोगों को कहते हुए -
"कर्म के फल इसी जन्म में मिल जाते हैं देखो फलाने ने ऐसा अन्याय किया तो उसके साथ अनुचित हुआ" और "कभी यह भी सुना होगा अच्छा इंसान है, इसके साथ कितना बुरा हुआ, किसी दूसरे जन्म का कर्म फल है"।

जैसे किसी को महीने के आख़िरी में सेलरी मिले या किसी का १० रुपया खो जाए तो यह भी कर्मफल ही तो है। ५ लाख की लॉटरी लग जाना या घर में आग लग जाना ही कर्मफल नहीं है सिर्फ़।

और ग़लत सही तो स्थिति, स्थान और समय के हिसाब से तय करते हैं।
जिसका प्रभाव व्यक्ति, समाज, वातावरण आदि के लिए ज़रूरी हो उसे सही और इसके विपरीत ग़लत कह सकते हो। लेकिन यह सब बदलते रहता है।

उदाहरण के लिए - जंगल काटना, वहाँ घर बनाना, पेड़ों का प्रयोग ईंधन के रूप में करना आज से कुछ साल पहले तक सब सही था। अभी के समय में ग़लत है। इस सृष्टि को इससे क्या लेना देना।
जरा सोचो तो इस पृथ्वी का आकार इस ब्रह्मांड के सामने।

एक और उदाहरण से समझो इसको
तुम्हारे पड़ोस के एक बच्चे की पेंसिल खो गई -
बच्चा परेशान हो सकता है अब डाँट पड़ेगी
या खुश अब नयी पेंसिल मिलेगी
उसके माँ बाप भी दुःखी हो सकते हैं एक अंश, बच्चा लापरवाह है या फिर कोई बात नहीं बच्चा ही तो है।
क्या तुम भी प्रभावित हो, तुम्हें तो शायद पता भी ना चले,
बताएगा कौन? इतनी छोटी सी बात
हाँ, पड़ोसी की कार खो जाए तो संभव है तुम्हें बताये और तुम अपनी सुविधा के अनुसार दुखी या सूखी हो सकते हो।

तो सारा ग़लत सही होना, दुखी या सुखी होना मन का खेल है।



tgoop.com/DhyanKakshaOrg/488
Create:
Last Update:

अगले जन्म में आत्मा वही रहती है या बदल जाती है और कर्मों का हिसाब हमारे मरने के बाद या पहले? अगर सब कुछ कर्मों का फल है फिर तो कुछ ग़लत सही नहीं होता है।
-
इसको इस तरह से समझो,
एक सुनार के पास एक सोने की ईंट है, उसमें से उसने कुछ सोना निकाला और एक कंगन बनाया, कुछ सोने से गले की हार बनाया, कुछ सोने से अंगूठी बनाई।

अब तीनों गहने अलग अलग इन्सान को बेच दिए गए, फिर क्या हुआ होगा। तीनों गहनों की अलग अलग यात्रा शुरू हुई होगी। हो सकता है गले की हार को बाद में अलग आभूषण में बदले गए हों। किसी और को बेचा गया हो।

बार बार अलग आकार मिला होगा, नए मालिक मिले होंगे। कोई आभूषण किसी के पास ज्यादा दिन रहे होंगे कोई जल्दी-जल्दी बदले गए होंगे। अंगूठी हाथ में होने के कारण जल्दी घिस जाती होगी तो अपेक्षाकृत जल्दी आकार और मलिक बदल जाते होंगे, हार कभी-कभी पहना जाता होगा तो लंबे समय तक एक ही आकार में रहता होगा। है न ?

तो समझने वाली बात यह है क्या सोना बदल रहा है ? क्या सोने के गुण में कोई परिवर्तन आ रहा है ? नहीं सिर्फ आकार बदल रहा है, मालिक अर्थात स्थिति बदल रही है।

अब यहाँ गौर से देखो, सारा सोना एक ही है। जो सोनार के ईंट में बचा हुआ है या आभूषणों में घूम रहा है बाज़ार में। इन्हें कहने की सुविधा के लिए - बड़ा सोना और छोटा सोना नाम भर दिया जा सकता है।

उसी तरह परमात्मा से एक अंश निकला और किसी आकार में स्थापित हुआ और फिर उसकी यात्रा शुरू हो गई। जो अंश बाहर निकला और बार-बार बदलता हुआ संसार में घूम रहा है उसे आत्मा कह लिया सुविधा के लिए और जहां से निकला उसे परमात्मा।

तो तुम समझ रहे होगे, आत्मा बदलती नहीं है बस उसको नये नये आकार के आवरण में जाना पड़ता है।

और कर्मों का हिसाब हर वक़्त होते रहता है कुछ हिसाब बहुत छोटे होते हैं तो हमें पता नहीं चलता है। मृत्यु के बाद बड़ा परिवर्तन होता है वहाँ स्थूल शरीर भी टूट जाते हैं, बदल जाते हैं इसलिए वह परिवर्तन स्पष्ट दिखता है।
तुमने सुना होगा लोगों को कहते हुए -
"कर्म के फल इसी जन्म में मिल जाते हैं देखो फलाने ने ऐसा अन्याय किया तो उसके साथ अनुचित हुआ" और "कभी यह भी सुना होगा अच्छा इंसान है, इसके साथ कितना बुरा हुआ, किसी दूसरे जन्म का कर्म फल है"।

जैसे किसी को महीने के आख़िरी में सेलरी मिले या किसी का १० रुपया खो जाए तो यह भी कर्मफल ही तो है। ५ लाख की लॉटरी लग जाना या घर में आग लग जाना ही कर्मफल नहीं है सिर्फ़।

और ग़लत सही तो स्थिति, स्थान और समय के हिसाब से तय करते हैं।
जिसका प्रभाव व्यक्ति, समाज, वातावरण आदि के लिए ज़रूरी हो उसे सही और इसके विपरीत ग़लत कह सकते हो। लेकिन यह सब बदलते रहता है।

उदाहरण के लिए - जंगल काटना, वहाँ घर बनाना, पेड़ों का प्रयोग ईंधन के रूप में करना आज से कुछ साल पहले तक सब सही था। अभी के समय में ग़लत है। इस सृष्टि को इससे क्या लेना देना।
जरा सोचो तो इस पृथ्वी का आकार इस ब्रह्मांड के सामने।

एक और उदाहरण से समझो इसको
तुम्हारे पड़ोस के एक बच्चे की पेंसिल खो गई -
बच्चा परेशान हो सकता है अब डाँट पड़ेगी
या खुश अब नयी पेंसिल मिलेगी
उसके माँ बाप भी दुःखी हो सकते हैं एक अंश, बच्चा लापरवाह है या फिर कोई बात नहीं बच्चा ही तो है।
क्या तुम भी प्रभावित हो, तुम्हें तो शायद पता भी ना चले,
बताएगा कौन? इतनी छोटी सी बात
हाँ, पड़ोसी की कार खो जाए तो संभव है तुम्हें बताये और तुम अपनी सुविधा के अनुसार दुखी या सूखी हो सकते हो।

तो सारा ग़लत सही होना, दुखी या सुखी होना मन का खेल है।

BY DhyanKaksha.Org


Share with your friend now:
tgoop.com/DhyanKakshaOrg/488

View MORE
Open in Telegram


Telegram News

Date: |

1What is Telegram Channels? “Hey degen, are you stressed? Just let it all out,” he wrote, along with a link to join the group. Matt Hussey, editorial director of NEAR Protocol (and former editor-in-chief of Decrypt) responded to the news of the Telegram group with “#meIRL.” Public channels are public to the internet, regardless of whether or not they are subscribed. A public channel is displayed in search results and has a short address (link). Deputy District Judge Peter Hui sentenced computer technician Ng Man-ho on Thursday, a month after the 27-year-old, who ran a Telegram group called SUCK Channel, was found guilty of seven charges of conspiring to incite others to commit illegal acts during the 2019 extradition bill protests and subsequent months.
from us


Telegram DhyanKaksha.Org
FROM American