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युधिष्ठिर को धर्मराज क्यू कहा गया... जो कृत किए उनका क्या?
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इसे समझने के लिए थोड़ा हिन्दू धर्म और वेद व्यास को समझते हैं क्योंकि तुम्हारा यह प्रश्न महाभारत से आता है।

हिन्दू किसी संप्रदाय विशेष का नाम नहीं हो सकता इसमें अलग-अलग मत, पंथ, विचार आदि का मिश्रण स्पष्ट दिखता है। हाँ यह एक भौगोलिक स्थिति रही होगी जहां हर मत के लोग रहते होंगे और सबको मिलाकर हिंदू की संज्ञा दे दी गई होगी।
यह कब हुआ होगा यह एक अलग विषय है।

परन्तु विषय को आसानी से समझने के लिए, इस भारतीय धर्म को, हिन्दू धर्म से ही संबोधित करते हैं।

हिंदू ग्रंथों को विषय और उद्देश्य के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया।
कुछ श्रुति कहलाये, कुछ स्मृति, कुछ इतिहास आदि आदि।

और महाभारत को इतिहास की श्रेणी में रखा जाता है।
अब आगे समझते हैं
क्योंकि हिन्दू धर्म बहुत ही पुराना धर्म है और शुरुआत में लिखने की परंपरा नहीं रही होगी। या शायद लिपि का विकास न हुआ हो तब से यह धर्म मानव समाज में व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का काम करता रहा हो।

उस समय सारा ज्ञान श्रुति के रूप में यानि गुरु शिष्य परंपरा के साथ अगली पीढ़ी तक दी जाती थी।

कृष्ण द्वैपायन जिन्हें वेद व्यास के नाम से जानते हैं। उन्होंने उपस्थित ज्ञान को वर्गीकृत करके ४ वेदों में लिखित रूप से प्रस्तुत किया।

वेद व्यास ने ही महाभारत लिखा और “श्रीमद भगवद्गीता” महाभारत का ही हिस्सा है।

इसे इसलिए समझा, क्योंकि समझना होगा लेखक कौन हैं और किस तरह रचनाएँ कर सकने के योग्य हैं।

अब जिस ग्रंथ में गीता जैसा ज्ञान हो और रचयिता स्वयं वेद व्यास हो, उसे सिर्फ़ इतिहास नहीं कह सकते।

अगर मेरी मानो तो, महाभारत एक इतिहास तो है लेकिन किसी दर्शन से कम नहीं है।

अब आते हैं युधिष्ठिर पर

पहले ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समझते हैं -

जब महाराज पाण्डु अपनी रानी कुंती और माद्री के साथ जंगल में थे, तो उन्हें एक ऋषि से शाप मिला - स्त्री संसर्ग करते ही उनकी मृत्यु हो जायेगी।

उस समय उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तो राजा के रूप में चिंतित होना स्वाभाविक था। ऐसी विषम स्थिति में उन्हें कुंती को मिले वरदान की जानकारी मिली।

दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुंती किसी भी देव, गंधर्व आदि का आह्वान करके उनसे पुत्र प्राप्ति कर सकती थी।

अब क्योंकि पाण्डु सत्यनिष्ठ और कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने ईच्छा रखी कि सबसे पहले धर्म के देवता को बुलाया जाये।
जिन्हें - धर्म या यम कहते हैं।
धर्म से जो पुत्र प्राप्त हुआ उन्हीं का नाम युधिष्ठिर है।

यह कोई साधारण पुत्र नहीं हैं जिनमें बाद में गुण विकसित किए जाने हैं, यह उद्देश्य को निश्चित रखते हुए प्राप्त किए गये हैं, धर्म के पुत्र हैं। है ना?

यहीं से नींव पड़ी, युद्धष्ठिर के धर्मराज नाम जुड़ने का।

एक कहानी आती है,

जहां उनके गुरु द्रोणाचार्य जब “सच बोलने का पाठ” पढ़ाते हैं तो उस दिन से उन्होंने सत्य बोलने का प्रण कर लिया।
हमें भी तो सिखाया जाता है, सच बोलो, अहिंसा करो, दया करो, दान करो … तो हम कितना प्रण ले पाते हैं और उनके भाइयों ने कितना लिया। विषम परिस्थिति में अक्सर लोग सत्य का साथ छोड़ देते हैं परन्तु उन्होंने नहीं छोड़ा।

एक और प्रसंग आता है,
जहां युद्ध के बाद वेश बदल कर शत्रुओं के घायलों की भी मदद करते हैं।

एक और प्रसंग आता है,
युद्ध के दौरान, अश्वत्थामा के मारे जाने की झूठी जानकारी गुरु को दे नहीं पाते हैं।

एक और प्रसंग आता है,
जब सरोवर के पानी से उनके सारे भाई मूर्छित हो जाते हैं, तब यक्ष द्वारा पूछे गये गूढ़ प्रश्नों के उत्तर दिये। जब बदले में एक भाई को जीवित करने की बारी आयी तो माद्री पुत्र नकुल का चयन किया।

जिस तरह के युद्ध के हालात थे ऐसे में, उन्हें शक्तिशाली अर्जुन या भीम को जीवित करना चाहिए था। वैसे भी नकुल सौतला भाई था। लेकिन उन्होंने दोनों माँओं एक एक पुत्र जीवित हों ऐसा सोचा।

वास्तव में, पूरे महाभारत में युधिष्ठिर को एक धर्म के साथ पाओगे इसलिए उन्हें धर्मराज की संज्ञा दी गई।

अब प्रश्न यह है कि,
जब धर्म पारायण हैं फिर उन्होंने जुआ क्यों खेला, भाइयों को दाव पर लगा दिया, राज्य गवाँ दिये, पत्नी तक को जुए में हार गये।
इसको ऐसे समझो,
यह उस समय के समाज को इंगित कर रहा है, हर समय का समाज एक जैसा नहीं रहता है और समाज के हिसाब से ही अलग-अलग धर्म तय किए जाते हैं।

धर्म के कई अर्थ होते हैं, उसमें एक अर्थ नियम भी है।

एक और बात को याद रखते हुए चलना - किसी भी पुस्तक, धर्म, ज्ञान आदि की ज़रूरत व्यक्तिगत और सामाजिक विकास एवं संचालन के लिए होती है।

उस समय एक राजा को जब कोई युद्ध के लिए या द्यूत के लिए, जुआ के लिए कोई ललकार दे वह उसे ना नहीं कर सकता अन्यथा वह हारा हुआ समझा जाएगा।



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युधिष्ठिर को धर्मराज क्यू कहा गया... जो कृत किए उनका क्या?
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इसे समझने के लिए थोड़ा हिन्दू धर्म और वेद व्यास को समझते हैं क्योंकि तुम्हारा यह प्रश्न महाभारत से आता है।

हिन्दू किसी संप्रदाय विशेष का नाम नहीं हो सकता इसमें अलग-अलग मत, पंथ, विचार आदि का मिश्रण स्पष्ट दिखता है। हाँ यह एक भौगोलिक स्थिति रही होगी जहां हर मत के लोग रहते होंगे और सबको मिलाकर हिंदू की संज्ञा दे दी गई होगी।
यह कब हुआ होगा यह एक अलग विषय है।

परन्तु विषय को आसानी से समझने के लिए, इस भारतीय धर्म को, हिन्दू धर्म से ही संबोधित करते हैं।

हिंदू ग्रंथों को विषय और उद्देश्य के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों में बाँटा गया।
कुछ श्रुति कहलाये, कुछ स्मृति, कुछ इतिहास आदि आदि।

और महाभारत को इतिहास की श्रेणी में रखा जाता है।
अब आगे समझते हैं
क्योंकि हिन्दू धर्म बहुत ही पुराना धर्म है और शुरुआत में लिखने की परंपरा नहीं रही होगी। या शायद लिपि का विकास न हुआ हो तब से यह धर्म मानव समाज में व्यक्तिगत और सामाजिक विकास का काम करता रहा हो।

उस समय सारा ज्ञान श्रुति के रूप में यानि गुरु शिष्य परंपरा के साथ अगली पीढ़ी तक दी जाती थी।

कृष्ण द्वैपायन जिन्हें वेद व्यास के नाम से जानते हैं। उन्होंने उपस्थित ज्ञान को वर्गीकृत करके ४ वेदों में लिखित रूप से प्रस्तुत किया।

वेद व्यास ने ही महाभारत लिखा और “श्रीमद भगवद्गीता” महाभारत का ही हिस्सा है।

इसे इसलिए समझा, क्योंकि समझना होगा लेखक कौन हैं और किस तरह रचनाएँ कर सकने के योग्य हैं।

अब जिस ग्रंथ में गीता जैसा ज्ञान हो और रचयिता स्वयं वेद व्यास हो, उसे सिर्फ़ इतिहास नहीं कह सकते।

अगर मेरी मानो तो, महाभारत एक इतिहास तो है लेकिन किसी दर्शन से कम नहीं है।

अब आते हैं युधिष्ठिर पर

पहले ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समझते हैं -

जब महाराज पाण्डु अपनी रानी कुंती और माद्री के साथ जंगल में थे, तो उन्हें एक ऋषि से शाप मिला - स्त्री संसर्ग करते ही उनकी मृत्यु हो जायेगी।

उस समय उनका कोई उत्तराधिकारी नहीं है, तो राजा के रूप में चिंतित होना स्वाभाविक था। ऐसी विषम स्थिति में उन्हें कुंती को मिले वरदान की जानकारी मिली।

दुर्वासा ऋषि के वरदान से कुंती किसी भी देव, गंधर्व आदि का आह्वान करके उनसे पुत्र प्राप्ति कर सकती थी।

अब क्योंकि पाण्डु सत्यनिष्ठ और कर्तव्यपरायण व्यक्ति थे इसलिए उन्होंने ईच्छा रखी कि सबसे पहले धर्म के देवता को बुलाया जाये।
जिन्हें - धर्म या यम कहते हैं।
धर्म से जो पुत्र प्राप्त हुआ उन्हीं का नाम युधिष्ठिर है।

यह कोई साधारण पुत्र नहीं हैं जिनमें बाद में गुण विकसित किए जाने हैं, यह उद्देश्य को निश्चित रखते हुए प्राप्त किए गये हैं, धर्म के पुत्र हैं। है ना?

यहीं से नींव पड़ी, युद्धष्ठिर के धर्मराज नाम जुड़ने का।

एक कहानी आती है,

जहां उनके गुरु द्रोणाचार्य जब “सच बोलने का पाठ” पढ़ाते हैं तो उस दिन से उन्होंने सत्य बोलने का प्रण कर लिया।
हमें भी तो सिखाया जाता है, सच बोलो, अहिंसा करो, दया करो, दान करो … तो हम कितना प्रण ले पाते हैं और उनके भाइयों ने कितना लिया। विषम परिस्थिति में अक्सर लोग सत्य का साथ छोड़ देते हैं परन्तु उन्होंने नहीं छोड़ा।

एक और प्रसंग आता है,
जहां युद्ध के बाद वेश बदल कर शत्रुओं के घायलों की भी मदद करते हैं।

एक और प्रसंग आता है,
युद्ध के दौरान, अश्वत्थामा के मारे जाने की झूठी जानकारी गुरु को दे नहीं पाते हैं।

एक और प्रसंग आता है,
जब सरोवर के पानी से उनके सारे भाई मूर्छित हो जाते हैं, तब यक्ष द्वारा पूछे गये गूढ़ प्रश्नों के उत्तर दिये। जब बदले में एक भाई को जीवित करने की बारी आयी तो माद्री पुत्र नकुल का चयन किया।

जिस तरह के युद्ध के हालात थे ऐसे में, उन्हें शक्तिशाली अर्जुन या भीम को जीवित करना चाहिए था। वैसे भी नकुल सौतला भाई था। लेकिन उन्होंने दोनों माँओं एक एक पुत्र जीवित हों ऐसा सोचा।

वास्तव में, पूरे महाभारत में युधिष्ठिर को एक धर्म के साथ पाओगे इसलिए उन्हें धर्मराज की संज्ञा दी गई।

अब प्रश्न यह है कि,
जब धर्म पारायण हैं फिर उन्होंने जुआ क्यों खेला, भाइयों को दाव पर लगा दिया, राज्य गवाँ दिये, पत्नी तक को जुए में हार गये।
इसको ऐसे समझो,
यह उस समय के समाज को इंगित कर रहा है, हर समय का समाज एक जैसा नहीं रहता है और समाज के हिसाब से ही अलग-अलग धर्म तय किए जाते हैं।

धर्म के कई अर्थ होते हैं, उसमें एक अर्थ नियम भी है।

एक और बात को याद रखते हुए चलना - किसी भी पुस्तक, धर्म, ज्ञान आदि की ज़रूरत व्यक्तिगत और सामाजिक विकास एवं संचालन के लिए होती है।

उस समय एक राजा को जब कोई युद्ध के लिए या द्यूत के लिए, जुआ के लिए कोई ललकार दे वह उसे ना नहीं कर सकता अन्यथा वह हारा हुआ समझा जाएगा।

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