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एक राजा का धर्म है वह लड़ते हुए मर जाये, परंतु अपनी प्रजा को जीते जी किसी के सामने ना झुकायें।
जरा सोच कर देखो, कितने विवेक वाले इंसान हैं युधिष्ठिर, भाईयों से कितना प्रेम है उन्हें, पत्नी से कितना प्रेम है। परन्तु एक जुए में हारने के लिए बैठे हैं।
क्रिकेट का खेल तो है नहीं जो मनोरंजन के लिए खेल रहे हैं, जीत-हार पर एक ट्रॉफ़ी की लेन-देन हो जाएगी और खेल का आनन्द के लिए खेल रहे होते तो किसी और के साथ खेल लेते। लेकिन यहाँ स्थिति अलग है। वह एक राजा हैं सब खोते जा रहे हैं, लेकिन उस समय के समाज के धर्म को निभा रहे हैं।
उस समय के समाज में नियम रहा होगा, आज के दृष्टिकोण से बड़ा ही अन्याय पूर्ण दिखता है। आज के समाज में भी ऐसी हज़ारों चीजें हैं जो उचित नहीं जान पड़ती लेकिन क़ानून है, नियम है, धर्म है।
दूसरा आध्यात्मिक दृष्टिकोण से देखें अगर,
पांडव के जितने भी गुण है सब उर्ध्वगामी गुणों के द्योतक हैं और कौरव अधोगामी गुणों के। इस तरह महाभारत एक यह भी संदेश देता है, अगर ५ पांडव के गुणों को अगर धारण करके रखा जाये तो १०० कौरवों पर भी जीत संभव हो जाती है।
उसी गुण में से एक गुण है, जीवन युद्ध में स्थिर रहना - युधिष्ठिर अर्थात् धर्म में स्थिर रहना - धर्मराज।
ॐ
BY DhyanKaksha.Org
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